सभी प्राणियों को समझें अपनी आत्मा के समान : आचार्यश्री महाश्रमण
जिन शासन के उज्ज्वल भास्कर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने निर्ग्रंथ प्रवचन का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि जितने भी प्राणी हैं, उन्हें अपनी आत्मा के समान समझो। मैं एक प्राणी हूं तो दूसरे भी प्राणी हैं। मैं सुख चाहता हूं तो दूसरे भी सुख चाहते हैं। मैं दुःख को पसंद नहीं करता, वैसे ही अन्य प्राणी भी दुःख से दूर रहना चाहते हैं। अहिंसा के विकास का यह चिंतन एक आलंबन बन सकता है। आदमी जीवन जीता है और उसके लिए पदार्थों का उपयोग भी करना पड़ता है, लेकिन पदार्थों के निर्माण में जीव हिंसा हो सकती है। स्थावर काय में भी सूक्ष्म जीव होते हैं। साधुओं के लिए अहिंसा सहित पांच महाव्रत होते हैं।
हम जैन तेरापंथ श्वेतांबर परंपरा से हैं। हमारे आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु हुए हैं। आचार्य भिक्षु ने कहा था—हे प्रभो! यह तेरापंथ। तेरापंथ का नामकरण जोधपुर में हुआ था। हमारे नवम आचार्य गुरुदेव श्री तुलसी ने अणुव्रत की शुरुआत की, ताकि धर्म व्यापक बने। कर्म स्थान में भी नैतिकता और अहिंसा का धर्म हो। अणुव्रत का अर्थ है छोटे-छोटे नियम। हमारे धर्मसंघ में संत और साध्वियां हैं। समणियां भी हैं, जो वाहन से यात्रा कर विदेशों में भी जाती हैं। साध्वीप्रमुखाजी साध्वियों की देखरेख करती हैं। अणुव्रत का 76वां वर्ष चल रहा है। आगम संपादन का कार्य भी जारी है।
पुरस्कार एवं सम्मान समारोह
पूज्यवर की पावन सन्निधि में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश, पद्मभूषण जस्टिस दलवीर सिंह भंडारी को अणुविभा अणुव्रत पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया। अणुविभा के अध्यक्ष अविनाश नाहर, तेजकरण सुराणा एवं न्यायाधीश भंडारी ने अपनी भावना व्यक्त की। आचार्य प्रवर ने अणुव्रत पुरस्कार के संदर्भ में आशीर्वचन प्रदान करते हुए जीवन में अहिंसा, नैतिकता और संयम की भावना का समावेश करने की प्रेरणा दी। संयम जीवन का स्वर्ण जयंती वर्ष 'शासनश्री' साध्वी विमलप्रज्ञाजी की जीवनी 'परिक्रमा परमार्थ की' जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा पूज्यवर को समर्पित की गई । 'शासनश्री' साध्वी विमलप्रज्ञाजी ने अपनी दीक्षा के 50 वर्षों की संपन्नता पर अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि साध्वी विमलप्रज्ञा जी का जीवन द्राक्षा फल जैसा है, वे बाहर और भीतर दोनों ओर से कोमल हैं। इनके भीतर तत्त्व ज्ञान, आगम आदि के प्रति अभिरुचि है। इन्होंने लगभग 24 साल तक आचार्यों की गोचरी की सेवा का कार्य किया है।
पूज्यवर ने जानकारी दी कि सन् 1974 में दिल्ली में गुरुदेव श्री तुलसी की सन्निधि में कार्तिक शुक्ल छठ को अनेक दीक्षाएँ हुई। उस दिन के दीक्षित 7 सदस्य वर्तमान में चारित्रात्मा के रूप में हैं। मुनि मोहजीतकुमारजी पहले गुरुकुलवास में संयोजन का काम संभालते थे। कुछ दिन पूर्व मुनि प्रकाशकुमारजी को भी दीक्षा के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। पूज्यवर ने उनके प्रति भी मंगलकामना व्यक्त की। साध्वी विमलप्रज्ञाजी अधिकांश समय गुरुकुलवास में ही रहें हैं। ये एक विशिष्ट और प्रौढ़ साध्वी हैं। वे आचार्य महाप्रज्ञ जी के साथ अंतरंग कार्यों से भी जुड़ी रही हैं। उन्होंने आचार्यों की गोचरी का दायित्व भी अच्छे से निभाया और आगम संपादन के कार्यों में भी योगदान दिया। पूज्य प्रवर ने साध्वी विशदप्रज्ञाजी, साध्वी प्रियवंदाजी, साध्वी कीर्तिलताजी, साध्वी निर्वाणश्रीजी और साध्वी शांतिलताजी के प्रति भी आशीर्वचन एवं प्रेरणा पाथेय प्रदान करवाया।
पूज्य प्रवर ने फ़रमाया कि दीक्षा के 50 वर्ष हो गए तो चिंतन करें कि 32 आगमों के मूल पाठ और अनुवाद का एक बार पारायण संपन्न हो जाए। चारित्रात्माओं की यह भावना रहे कि संघ की आवश्यकता पहले है, ज्ञातिजन बाद की बात है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में 3 नवंबर से 7 नवंबर तक चले संस्कार निर्माण शिविर के शिविरार्थियों ने अपने अनुभव साझा किए। मुनि जितेंद्रकुमारजी ने शिविर की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।