सफलता का पौधा श्रम के जल से सींचने पर ही होता है विकसित : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सफलता का पौधा श्रम के जल से सींचने पर ही होता है विकसित : आचार्यश्री महाश्रमण

कार्तिक शुक्ल पंचमी – ज्ञान पंचमी। इस दिन को लाभ पंचमी भी कहा जाता है। ज्ञान के महासागर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी लोभ से अभिभूत हो जाता है और अनेक चित्तों वाला बन जाता है। अनेक प्रकार की बातें उसके दिमाग में आती रहती हैं। शास्त्रकार ने कहा है कि लोभ इतना होता है कि आदमी चलनी को पानी से भरना चाहता है। जैसे चलनी को भरना मुश्किल है, वैसे ही कई बार आदमी की इच्छाएं इतनी अधिक होती हैं कि उनकी पूर्ति करना असंभव हो जाता है। सघन साधना शिविर और संस्कार निर्माण शिविर चल रहे हैं। बच्चों को यह समझना चाहिए कि आवश्यकता और इच्छाओं में अंतर है। आवश्यकता अलग है, और इच्छाएं अलग। इच्छाएं तो आकाश के समान असीम हैं।
यदि सोने और चांदी के कैलाश जैसे असंख्य पर्वत हो जाएं, तो भी लोभी व्यक्ति को संतोष नहीं होता। वह कहता है, और चाहिए, और चाहिए। असीम इच्छाओं को पूरा करना मुश्किल है। जब इच्छाएं पूरी नहीं होतीं, तो आदमी गुस्से से भर जाता है। इसलिए इच्छाओं का परिसीमन करना आवश्यक है। जीवन में ईमानदारी रखें, और परिश्रम करें। सफलता का पौधा श्रम के जल से सींचने पर ही विकसित होता है। जो उद्योगशील होता है, लक्ष्मी उसका वरण करती है। जो तप करता है, वह पाप से दूर रहता है, और जो श्रम करता है, वह दरिद्रता से दूर रहता है। मौन रहने वाले को कलह का सामना नहीं करना पड़ता, और जो जागरूक रहता है, उसे भय नहीं सताता। सत्य बोलें, प्रिय बोलें। ऐसा प्रिय भी नहीं बोलें जो झूठ हो। सामान्यतः ऐसा सच भी नहीं बोलें जो कटु हो। यथार्थ और प्रिय वचन का बड़ा महत्व है।
'तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर।।'
पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया - आज साध्वीवर्या का जन्मदिवस है। वे चवालीस वर्ष की हो रही हैं। उनके जीवन में अच्छा विकास होता रहे।
साध्वीवर्याजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जो मजबूत होता है, वही मुसीबतों में अपने आपको बनाए रख सकता है। जिसके भीतर सहिष्णुता और सहनशीलता होती है, वही व्यक्ति मुसीबतों का सामना कर सकता है, उसके जीवन में गुणों का परिवार स्वाभाविक रूप से आ जाता है। वह व्यक्ति क्षमावान और धैर्यवान होता है। वह हर परिस्थिति में स्थिर रह सकता है। जो सहन करता है, वही महान होता है। मुनि तो पृथ्वी के समान सहनशील होता है। गृहस्थों को भी सहनशील बनना चाहिए। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्वावधान में अणुव्रत क्रिएटिविटी कॉन्टेस्ट के राष्ट्रीय स्तर के विजेताओं ने अपनी प्रस्तुति दी। इस संदर्भ में अणुविभा अध्यक्ष अविनाश नाहर ने अपनी प्रस्तुति दी।