कठिनाइयों के बावजूद भी झूठ नहीं बोलें : आचार्यश्री महाश्रमण
अष्टगणी सम्पदा से सुशोभित आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन जिनवाणी का श्रवण कराते हुए फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है—सत्य एक शब्द है, जिसके अनेक अर्थ बताए गए हैं। सत्य का एक अर्थ है—सत्! अस्तित्व का वाचक भी सत्य शब्द है। यथार्थ वचन भी सत्य से जुड़ा हुआ है और भी अनेक शब्द सत्य से संबंधित हैं। साधारण भाषा में यथार्थ को सत्य के रूप में लिया जाता है।
'सांच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।
जाकै हिरदै साच है, ता हिरदै प्रभु आप।।'
सच्चाई के लिए सरलता का भी होना अपेक्षित है। जैसे झूठ और कपट का जोड़ा है, वैसे ही सच्चाई और सरलता का भी एक युगल है। सच्चाई की साधना में सरलता की साधना आवश्यक है। जो मन में है, वही वाणी और आचरण में हो—यह महात्मा का लक्षण है। इनमें विषमता होना दुरात्मा का लक्षण बताया गया है। साधु को तीन करण और तीन योग से मृषावाद का त्याग करना होता है।
हर सत्य बात को बताना जरूरी नहीं है, लेकिन झूठ भी नहीं बोलना चाहिए। जो भी बोला जाए, सच बोला जाए। केवलज्ञानी के लिए भी हर सच बोलना मुश्किल हो सकता है। जो उचित हो, वह कहा जाए, लेकिन हर बात प्रकट करना आवश्यक नहीं है। सच्चाई में आस्था और स्थिरता होनी चाहिए। कठिनाइयों के बावजूद आदमी का मनोबल इतना मजबूत हो कि चाहे जो हो जाए, झूठ नहीं बोलना। ऐसे महापुरुष धन्य होते हैं, वे दुनिया के महान व्यक्तित्व कहलाते हैं। सघन साधना शिविर के प्रतिभागियों में यह निष्ठा जागनी चाहिए कि झूठ नहीं बोलना है। शिविर के बाद भी इस सघनता को बनाए रखें। संस्कार निर्माण शिविर के शिविरार्थी भी सच बोलने का प्रयास करें।
प्रकाशन एवं प्रस्तुति : 'शासनश्री' साध्वी कंचनप्रभाजी की आत्मकथा 'जीवन की उजली भोर', जो जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित की गई है, पूज्यवर को समर्पित की गई। पूज्यवर की सन्निधि में बीदासर का संघ दर्शनार्थ पहुंचा। तेरापंथी सभा-बीदासर के अध्यक्ष संपतमल बैद, तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री रितिक बोथरा, विजय चोरड़िया, अमृतवाणी के पूर्व अध्यक्ष रूपचंद दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कलकत्ता का संघ भी दर्शनार्थ पहुंचा। कलकत्ता संघ की ओर से भी गीत की प्रस्तुति की गई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।