ध्यान का प्रवेश द्वार है कायोत्सर्ग

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ध्यान का प्रवेश द्वार है कायोत्सर्ग

प्रेक्षा फाउंडेशन के निर्देशन में प्रेक्षा वाहिनी शाहीबाग अहमदाबाद व तेरापंथ सेवा समाज के संयुक्त प्रयास से तेरापंथ भवन में प्रेक्षा कल्याण वर्ष के उपलक्ष में ‘भगवान महावीर की साधना-कायोत्सर्ग’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुनि मुनिसुव्रत कुमार जी व मुनि डॉ. मदन कुमार जी के मंगल पाठ से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। प्रेक्षा प्रशिक्षक जवेरीलाल संकलेचा ने प्रेक्षा कल्याण वर्ष पर भगवान महावीर की साधना कायोत्सर्ग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ध्यान का प्रवेश द्वार, प्रथम बिंदु कायोत्सर्ग है। आत्मा और शरीर के भिन्नता की अनुभूति कायोत्सर्ग से होती है अतः यह मध्य बिंदु है।
समाधि, शुक्ल ध्यान व व्युत्सर्ग की साधना भी कायोत्सर्ग से संभव है अतः अंतिम बिंदु भी है। कायोत्सर्ग अर्थात काया+उत्सर्ग इन दो शब्दों की संधि से कायोत्सर्ग शब्द बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है शरीर को छोड़ना, शरीर की पकड़ को छोड़ना, शरीर को ढीला छोड़ना। कायोत्सर्ग का भावार्थ है कि ऐच्छिक क्रियाओं - प्रवृत्तियों का त्याग एवं शरीर के प्रति ममत्व का त्याग। साधना की चरम स्थिति में शरीर को छोड़कर आत्मा का आत्मा में अवस्थित हो जाना कायोत्सर्ग से ही संभव है। त्रिपदी वंदना व प्रेक्षा गीत का संगान विमल बाफना ने करवाया। तेरापंथ सेवा समाज के प्रधान ट्रस्टी सज्जनराज सिंघवी ने स्वागत किया। अध्यक्ष नानालाल कोठारी ने मंगल भावना करवाई। प्रेक्षा प्रशिक्षक अरविंद भाई डोसी ने अपने विचार व्यक्त किए, आभार व कुशल संयोजन जवेरीलाल संकलेचा ने किया।