शरद पूर्णिमा पर अनुष्ठान का आयोजन
साध्वी संयमलता जी के सान्निध्य में शरद पूर्णिमा महाअनुष्ठान का आयोजन मंडिया में किया गया। साध्वीश्री ने कहा कि जीवन की मंगरूपता का कारण व्यक्ति स्वयं है, क्योंकि व्यक्ति का आचार ही उसे मानवता के श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन करता है। मानसिक और वैचारिक अशांति को दूर करने के लिए मन का निर्मल होना आवश्यक है। मन को निर्मल बनाने में स्तुति, स्तवन, और मंत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। मंत्रों के द्वारा शरीर और मन दोनों पर प्रभाव पड़ता है; ये हमारे मन में उत्साह, बल, शक्ति और स्वाभिमान का संचार करते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा के सम्मुख जप करने से चंद्रमा के समान उज्ज्वल कीर्ति फैलती है। जीवन में उन्नति, समृद्धि, श्रीवृद्धि, पारिवारिक शांति, स्वास्थ्य और अमरत्व की प्राप्ति होती है। ज्योतिषशास्त्र की मान्यता के अनुसार, केवल इसी दिन चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होता है। जैन धर्म में यह दिन ज्ञान प्राप्ति, चित्त की चंचलता दूर करने, सभी कार्यों की सिद्धि और सभी रोगों को शांत करने का महान पर्व माना गया है। जयाचार्य द्वारा रचित चौबीसी का एक-एक पद मंत्रमय है। आज शरद पूर्णिमा के दिन शीतलता देने वाले भगवान चंद्रप्रभु का जप और 8वीं चौबीसी का संगान करना चाहिए। साध्वीश्री जी ने आगे कहा कि शरद पूर्णिमा का लौकिक महत्व भी है। पूर्णिमा की चांदनी में मेवा और खीर आदि रखकर खाने से शीतलता मिलती है, और चांदनी में सुई पिरोने से नेत्र शक्ति बढ़ती है। आज हम मंत्रों के माध्यम से आचारात्मक प्रवृत्तियों का विकास, स्वभाव का नियंत्रण, कषाय की शांति, आरोग्य, विवेक और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। साध्वी मनीषाप्रभा जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।