जीवन की हर परिस्थिति में समता एवं अभय की अनुप्रेक्षा करें : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 14 अक्टूबर, 2021
साधना के शिखर पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम के दसवें अध्याय में 100वें सूत्र में बताया गया है कि हमारी दुनिया नियमों या व्यवस्था से चल रही है। शास्त्रों में अनेक बातें मिलती हैं। जिनसे जानकारी मिलती है कि शास्त्रों के अनुसार ये-ये कई सृष्टि के नियम कि कौन प्राणी मरकर के कहाँ जा सकता है, कौन प्राणी कहाँ से आया हो सकता है। कभी-कभी ऐसी घटना भी घट सकती है, जो सामान्यतया नहीं होने की है। ऐसी घटना को आश्चर्य कहा जा सकता है। सामान्य रूढ़ियाँ प्रसंग से हटकर एक बात का होना आश्चर्य की बात हो सकती है। ठाणं के इस सूत्र में दस आश्चर्य बताए गए हैं।
जैन शासन में भगवान महावीर के काल तक दस ऐसी अद्भुत घटनाएँ घटी हैं, जिन्हें आश्चर्य की संज्ञा दी गई है। ये घटनाएँ भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों के समय में घटित हुई है। अनेक घटनाएँ तो भगवान महावीर से या उनके समय से जुड़ी है। आश्चर्य हैउपसर्ग। तीर्थंकर के उपसर्ग होना। भगवान महावीर ने भी कितने उपसर्गों को सहा था या सामना किया होगा। विशेष बात उन उपसर्गों में यह है कि केवलज्ञान हो जाने के बाद भी उपसर्ग आया था। ऐसे तीर्थंकर तो महापुण्यशाली होते हैं। तीर्थंकर नाम कर्म गौत्र का होगा भी, तीर्थंकरत्व का होना भी उनकी महान पुण्यशालिता का परिचायक होता है। भगवान महावीर के साधना-काल में भी अनेक उपसर्ग आए थे। तीर्थंकरत्व की अवस्था में भगवान महावीर पर तेजोलब्धि का प्रयोग किया गया था। यह आश्चर्य की बात है। दूसरा प्रसंग आश्चर्य का हैगर्भ संहरण। भगवान महावीर जब देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षी में थे फिर उनका त्रिशला की कुक्षी में स्थानांतरित किया गया था। तीसरा आश्चर्य है कि उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लीनाथ प्रभु का स्त्री रूप में अवतरण होना। स्त्री का तीर्थंकर बनना सामान्य व्यवस्था से हटकर एक आश्चर्य है। चौथा प्रसंग हैअभावित परिषद् तीर्थंकर की देषणा का खाली चला जाना। भगवान महावीर की प्रथम देषणा खाली चली गई थी। कोई भी विरति भाव वाला नहीं बना यह भी एक आश्चर्य है। पाँचवाँ प्रसंग हैकृष्ण का अपरकंका नगरी में जाना। जैन भूगोल में अढ़ाई द्वीप में दूसरा द्वीप है घातकीखंड है, वहाँ ये अपरकंका नाम की नगरी है, जिसमें राजा पद्मनाथ हुए थे, जिन्होंने द्रोपदी का अपहरण कर लिया था मित्र देव की सहायता से। कृष्ण द्रोपदी को वापस लाने अपरकंका नगरी गए थे। लंबा प्रसंग है। अन्य द्वीप में चला जाना यह आश्चर्य की बात है। छठा आश्चर्य हैचंद्र और सूर्य का विमान सहित पृथ्वी पर आना। भगवान महावीर के पास कौशाम्बी नगरी में दिन के अंतिम प्रहर में चंद्र और सूर्य अपने-अपने मूल शाश्वत नियमों सहित समोवसरण में भगवान महावीर को वंदना करने आए। शाश्वत विमानों सहित आना एक आश्चर्य है, वरना उत्तरवैक्रिय के द्वारा निमित्त विमानों से आते हैं। सातवाँ एक प्रसंग हैहरिवंश कुल की उत्पत्ति का होना। यह एक लंबा आश्चर्यकारी प्रसंग बना है। आठवाँ हैचमर का उत्पात। चमरेंद्र का सौ धर्म देवलोक में चला जाना। किस प्रकार भवनपति निकाय का इंद्र चमरेंद्र कैसे ऊपर सौ धर्म देवलोक में जाता है, वहाँ के इंद्र की अवहेलना करता है, फिर भगवान महावीर की शरण में आता है। भवनपति इंद्र का ऊपर चले जाना यह भी एक आश्चर्य है। नौवाँ प्रसंग हैआश्चर्य का एक समय में 108 सिद्ध का होना। 108 व्यक्तियों का एक साथ मुक्त हो जाना। जब भगवान ॠषभ मुक्ति को प्राप्त हुए थे तब उनके साथ उनके 99 संसारपक्षीय पुत्र और 8 पौत्र एक स्वयं यूँ मुक्ति को प्राप्त हुए थे। उत्तराध्ययन सूत्र में तीन प्रकार से 108 सिद्ध एक समय में होने के बताए गए हैं। निर्गन्थ के वेष में एक साथ 108 सिद्ध हो जाए। मध्यम अवगाहना में एक साथ 108 सिद्ध हो जाएँ, तिरछे लोक में एक साथ 108 सिद्ध हो जाते हैं। यहाँ पर आश्चर्य की बात यह है कि भगवान ॠषभ के समय में उत्कृष्ट अवगाहना थी। उत्कृष्ट अवगाहना शरीर वाले व्यक्ति एक साथ ज्यादा से ज्यादा दो ही मोक्ष में जा सकते हैं। उत्कृष्ट अवगाहना शरीर वाले 108 का एक साथ मोक्ष जाना आश्चर्य है।
दसवाँ प्रसंग बताया गया है कि असंयमी की पूजा। नौवें तीर्थंकर सुविधिनाथ भगवान के निर्वाण के बाद कुछ समय बीतने पर हूंडा अवसर्पिणी के प्रभाव से साधु परंपरा का विच्छेद हो गया। तब श्रावकों को धर्म का ज्ञाता मानकर उनकी पूजा करने लगे। अपनी पूजा और प्रतिष्ठा होते हुए देखा तो उन धर्म को बताने वाले श्रावकों में अहंकार आ गया। नए शास्त्रों की रचना कर दी। द्रव्य दान के अधिकारी भी हम ही लोग हैं, यूँ असंयती की पूजा होने लगी। हमारी सृष्टि में ऐसी घटनाएँ घट सकती हैं। वर्तमान में जो कोरोना की स्थिति बनी वो भी एक संभवत: ऐसी घटना पिछले 80-100 वर्षों में हुई नहीं होगी। आश्चर्य जैसा है। हमारा समता भाव व अभय की अनुप्रेक्षा चलती रहे। नवरात्र का आठ दिन का क्रम चलाया, वो भी आज संपन्न हो गया है। हम हमारे ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप की साधना में आगे बढ़ें। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि बाह्य तप में चार प्रकार आहार से जुड़े हुए हैं। पाँचवें तप काम-क्लेश की विवेचना करते हुए समझाया कि काय-क्लेश यानी शरीर को कष्ट देना। उत्कृष्ट आसनों को धारण करना। शरीर को साधे बिना साधना की भूमिका में आरोहण नहीं किया जा सकता। आतापना लेना भी काय-क्लेश हैं मुमुक्षु रोशनी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। संजय भानावत ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि साधना बल के द्वारा सारे बल व अनेक शक्तियों का पुज्यप्रवर में दर्शन किया जा सकता है।