मुनिश्री विजयराज के प्रति चारित्रात्माओं के उद्गार
मुनिश्री विजयराज जी स्वामी राजगढ़ के मुसरफ परिवार से संबद्ध थे। तेरापंथ धर्म संघ में उनकी अपनी पहचान थी। उनका शारीरिक सौष्ठव तथा गौरवर्ण विदेशी स्वरूप के साथ जुड़े होने से हम सन्त समाज में वे अन्तर्राष्ट्रीय के रूप में पहचाने जाते थे। वे संयम साधना की आराधना के साथ स्कूलों में जीवन विज्ञान से जुड़े प्रयोगों से विद्यार्थियों में प्रवचन के माध्यम से संस्कार भरने में विशेष रूचि रखते थे। इस कार्य का मूल्यांकन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने उन्हें ‘जीवन विज्ञान महासंप्रसारक’ सम्बोधन से संबोधित किया। मुनिश्री की एक और विशेषता थी कि वे प्रत्येक साधु-सन्त अथवा गृहस्थ के किसी विशेष अवसर पर दोहे, छन्द बनाकर तत्काल दे देते थे। उनके द्वारा लिखित गीत, कहानियां आदि भी प्रकाशित हुए। वे सरल स्वभाव के सौम्य सन्त थे। मुनिवर का जीवन सहज व्यावहारिक था। उनके सहयोगी मुनि निर्मल कुमार जी भी पारिवारिक रिश्तों से युक्त थे। ‘शासनश्री’ मुनि सुखलाल जी स्वामी के साझ में भी मर्यादा महोत्सव आदि अवसर पर भी उन्हें साथ रहने का अवसर मिला। मुनिश्री विजयराज जी की अग्रिम भव यात्रा सिद्धत्व की ओर गतिमान हो। मंगलकामना।