वीतरागता की भावना का हो उत्तरोत्तर विकास
अहंकार पतन की ओर ले जाता है। रूप, धन, ज्ञान, यौवन, बल का अभिमान हो सकता है। राजा रावण का पतन अहंकार से हुआ। व्यक्ति विनम्र बने, झुकना सीखे, परोपकार करे। दया और करुणा जिसके भीतर है, जो पाप से डरता है वह व्यक्ति धार्मिक है। राग द्वेष अहंकार छोड़ें तब वीतरागता की और प्रस्थान संभव है। उपरोक्त उद्गार मुनि सुमति कुमार जी ने चांडक भवन उपस्थित धर्म सभा में व्यक्त किए। प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग कराते हुए मुनि देवार्य कुमार जी ने विवेक में धर्म बतलाया। मुनि श्री ने आगे कहा कि संयम पूर्वक खाना, बोलना, उठना, बैठना हो तो पापकारी प्रवृत्ति से वंचित रहा जा सकता है। कार्यक्रम का कुशल संचालन सभा उपाध्यक्ष लाभचंद छाजेड़ ने किया।
मुनि सुमति कुमार जी की संसारपक्षीय माता किरण देवी आंचलिया का ‘श्राविका गौरव’ सम्मान प्राप्त होने पर तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ सभा द्वारा साहित्य दुपट्टा भेंट कर किया गया। इंद्रचंद बैद, सभा अध्यक्ष शुभकरण चौरडिया, महिला मंडल अध्यक्ष सुमन मरोठी, युवक परिषद अध्यक्ष निर्मल चोपड़ा ने अपने विचार रखे।