शान्त सहवास के लिए अपने अंदाज से कुछ बातों को करें नजरअंदाज
तेरापंथ भवन चेम्बूर में आयोजित परिवार प्रशिक्षण कार्यशाला में उपस्थित श्रावक-श्राविका परिवार को संबोधित करते हुए साध्वी मंगलप्रज्ञा जी ने कहा- जहां समूह होता है वहां कुछ नियम भी होते हैं। अनुशासन, मर्यादा और व्यवस्थाएं होती हैं। व्यक्ति परिवार की ईकाई है और परिवार समाज की ईकाई है। समूह में रहने वाला व्यक्ति सुरक्षित रहता है। चारों ओर से सुरक्षित रहना ही परिवार की परिभाषा है। समूह में रहने वाला व्यक्ति चिन्तन करें कि उसके कारण बाधा उपस्थित न हो। समूह में रहने वाला यदि मनचाहा करने लगे तो वह आनन्द और सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।
साध्वीश्री जी ने कार्यशाला में उपस्थित संभागियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा- परिवार का सबसे बड़ा धर्म है- सहिष्णुता। सहन करना सफलता का महान सूत्र है। हम मानते हैं जिन्दगी आसान नहीं है पर जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र होना चाहिए - अपने अंदाज से कुछ बातों को नजरअंदाज करना सीखें। बहुत सारी बाते देखते हैं, कानों से सुनते हैं पर वक्त आने पर सब कहना उचित नहीं है, आवश्यक नहीं है। साध्वीश्री जी ने कहा जिस प्रकार एक माली बगीचे की सुन्दरता के लिए कटाई, छंटाई करता रहता है, पौधे में खाद और पानी देता है वैसे ही हर अभिभावक अपनी भावी पीढ़ी को, नन्हीं पौध को उनके कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति जागरुक करते रहें, संस्कारों से सिंचित करते रहें। साध्वीश्री जी ने कहा-आज स्थितियां बदल रही हैं। आवश्यकता है परिवार का हर सदस्य बड़े बुजुर्गों के अनुभव साझा करें, उनका सम्मान करे। वहीं बुजुर्गों का दायित्व है वे वात्सल्य भाव बनाए रखें। क्योंकि परिवार आग्रह से नहीं आदर से चलते हैं। दूसरों से बदलाव की अपेक्षा न करें, खुद का बदलाव अपेक्षित है। सहयोग, स्नेह और आनंद देना सीखें।
इससे पूर्व साध्वी अतुलयशा जी के मंगलाचरण से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। साध्वी डॉ. शौर्यप्रभा जी ने स्वस्थ परिवार के अनेक टिप्स बताए। साध्वी वृन्द ने 'परिवार उसी को कहते हैं, सौहार्द सुमन जहां खिलते हैं' गीत का संगान किया। साध्वी डॉ. चैतन्यप्रभा जी ने कुशल मंच संचालन किया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष रमेश धोका ने सम्पूर्ण परिषद की ओर से आभार प्रदर्शित किया एवं पुन: ऐसे आयोजन का निवेदन किया।