शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

अर्हम्

साध्वी हेमरेखा, साध्वी प्रसन्‍नप्रभा, साध्वी ॠतुयशा

जय-जय हो जयप्रभाजी सतीवर की।
संथारे के हर उजले पल की---जय---

लघुवय में संयम स्वीकारा, श्री तुलसी करकमलों द्वारा।
बदली धारा निज जीवन की॥1॥

आज्ञा-आराधन में तत्पर, संघ सेवा में रहते सत्वर।
पाई शुभ द‍ृष्टि तीन-तीन गुरुओं की॥2॥

निर्मल उज्ज्वल आभामंडल, पुलकित रहता निज मुखमंडल।
रहती निर्मलता अंतर भावों की॥3॥

सेवाभावी सतियाँ सारी, दिल्ली नगरी साताकारी।
नीवें गहराई गणवन की॥4॥

शासनश्री जयप्रभाजी ने, कैसा अद्भुत संथारे का योग मिला।
मंगल महिमा गाते हम, प्रसन्‍न ॠतु इस अवसर की॥5॥

तेरापंथ धर्मसंघ में संथारा-संलेखना का अवसर बिरले साधु-साध्वियों को मिलता है। आज शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी महाराज ने बहुत हिम्मत व साहसिक चरणों को इस कोरोना काल में अपने जीवन को झकजोर दिया और आचार्यश्री महाश्रमण के शासनकाल में संथारा कर जीवन का, संयम का सार निकाला है। हम दूर बैठे तीनों सतियाँ आपकी मंगलकामना, भावना करते हैं कि हमें भी ऐसे संयम जीवन का अंतिम समय आप जैसे संथारा-संलेखना कर आत्मा को भावित करें। इन्हीं मंगलभावों के साथ अपने शब्दों को विराम देती हूँ।
लय : जय बोलो संघ सितारे की----

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