वर्धमान महोत्सव के उपलक्ष में प्रस्तुत गीत

वर्धमान महोत्सव के उपलक्ष में प्रस्तुत गीत

लय : आंखें खुली हो या बंद
दुनिया में संघ है यही, जो शानदार लगता है।
वर्धमान है शासन प्यारा, प्राण अपना कहता है।
जय हो जय हो शासनम्, भैक्षव शासनम् ।।
1. क्या कभी सोचा है हमने, कितने आगे हैं हम,
है खुला आकाश देखो, कितने बढ़ते हैं हम,
छिपी हुई लौ जो दिल में है उसको फिर से जलाना।
अर्हताएं निखारकर, करके कुछ दिखाना।
ए नाथ! तेरी दृष्टि से, शासन पवन ज्यों चलता है।।
2. जो भी ले संकल्प ऊँचे, उनको पा के रहें,
चाहे हो संघर्ष जितने, वीर बन के सहें,
बहती हुई उन हवाओं में, अपना पौधा खिलाना।
औरों को देते हैं छांव वो, अपना आशियाना।
ए नाथ! तेरी दृष्टि से, शासन सुमन महकता है।।
3. हम करे सहयोग मन से, जिनके बढ़ते कदम,
संघ ही परिवार मेरा, लक्ष्य अपना परम,
संघफजी हैं हम सभी, सबकी अपनी विशेषता।
मन में खुशियां अथाह है, पाकर के ऐसी एकता
ए नाथ! साथ हैं सभी, शासन सदन निखरता है।।
4. हो कमी अपने में कोई, करते जाएंगे कम,
जी चुराना है नहीं बस, करते जाना है श्रम,
कितनों की स्वेद बूंदों से तेरापंथ खिला है।
क्रांति भिक्षू की बगड़ी में, अद्भुत सिलसिला है।
ए नाथ! गण की नींव में, हीरा खुदा ही दिखता है।।
5. राज क्या महावीर पथ का ? भिक्षो तेरा है पंथ,
शुद्ध संयम पालते ज्यो, वीर विभुवर के संत,
जैसे हो पूनम की चांदनी, इतनी सुंदर कलाएं।
तेरी ये आभा निहारने, थमती है निगाहें।
ए नाथ! तारों में सदा, चांद तेरा चमकता है।
6. है धरा सौराष्ट्र पुलकित, आए पुण्य सम्राट ।
राजकोट में लगा है, चार तार्थ का ठाट।
धन्य हुई युनिवर्सिटी, महाश्रमण है पधारे,
तेरी कृपा से हर जगह, आत्मीय बनते सारे,
ए नाथ! तेरे हाथ में, कुछ जादू जैसा लगता है।।