वर्धमान महोत्सव के उपलक्ष में प्रस्तुत गीत
लय : ए वतन के नौजवां
वर्धमान वर्धमान तेरापंथ वर्धमान,
ज्ञान दर्श चरण मा अमे बधा प्रवर्धमान ।
लक्ष्य छे साधना, सत्य नी आराधना,
सत्य नी साधना थी, संघ छे प्रवर्धमान ।।
1. आलोकित नभ धरा दिगंत, हे प्रभो यह तेरापंथ,
तेरापंथ की क्या पहचान, एक गुरु और एक विधान।
एक ही आचार है, एक ही विचार है,
एकाचार विचार से, संघ है प्रवर्धमान।।
2. अनुशासन के सिंहासन पर, वत्सलता और अपनापन,
गण नायक का एक इशारा, कर दें अपना सब अर्पण।
आश है, आश्वास है, संघ का विश्वास है,
आश और विश्वास से, संघ है प्रवर्धमान ।।
3. धूप छाँव में सबल सहारा, हम गण के, गण है हमारा,
ज्योतिर्मय इस संघ शरण में, तोड़ें कर्मों की कारा।
अवदान है, संधान है, संघ ही वरदान है,
अवदान और वरदान से, संघ है प्रवर्धमान ।।
4. महाश्रमण युग में, नूतन प्रेरणाएं पा रहे,
हौंसले हैं निराबाध, हम आगे बढ़ते जा रहे।
सिद्धियां मिले यहां, शक्तियां जगे यहां,
सिद्धि और शक्ति से, संघ है प्रवर्धमान ।।
5. राजकोट सौराष्ट्र मा, प्रभु ने पेलू शुभागमन,
जय-2 ज्योतिचरण नी ध्वनि थी, अनुगुंजित छे धरा गगन।
अंतर मा उल्लास छे, खिली रह्यो मधुमास छे,
उल्लास ना मधुमास थी, संघ छे प्रवर्धमान ।।