सप्तम आचार्य डालगणी धर्मसंघ के विलक्षण और तेजस्वी आचार्य थे : आचार्यश्री महाश्रमण
उज्जैन शहर, 27 मई, 2021
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का आज सप्तमाचार्य परमपूज्य श्री डालगणी की जन्मभूमि उज्जैयनी नगरी के तेरापंथ भवन में पदार्पण हुआ। पूज्यप्रवर पूज्य डालगणी के जन्म स्थान पर पधारे जहाँ पर समण सिद्धप्रज्ञ जी ने पूज्यप्रवर का स्वागत किया। पूज्यप्रवर ने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कुछ दोहों का निर्माण किया। पूज्यप्रवर आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी जिस पट्ट पर विराजे थे उस पट पर विराजे।
उज्जैन वीर विक्रमादित्य और सिद्धसेन के साथ जुड़ा है। कल्याण मंदिर स्त्रोत की रचना यहीं हुई थी। अनेक इतिहास इस नगरी के साथ जुड़े हुए हैं। आज और एक इतिहास जुड़ गया है कि तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता यहाँ पधारे हैं।
महातपस्वी, महायशस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज हम उज्जैयनी नगरी में अवस्थित हैं। अहिंसा यात्रा में मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में आना हुआ। उज्जैन हमारे तेरापंथ धर्मसंघ के सप्तमाचार्य परमपूज्य डालगणी के जन्म-भूमि होने के गौरव से मंडित है, गौरवान्वित है।
पूज्य डालगणी हमारे धर्मसंघ के एक विलक्षण आचार्य थे। मैं भिक्षु स्वामी के बाद के इतिहास में दो आचार्यों को विलक्षण मानता हूँ। एक तो आचार्यश्री डालगणी और फिर दसवें आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को। इनका आचार्य पदारोहण विलक्षण हुआ है। सामान्य विधि है कि वर्तमान आचार्य ही भावी आचार्य की नियुक्त-मनोनयन करते हैं। वह नियुक्ति दो प्रकार से हो सकती है, एक प्रच्छन्न रूप में और प्रकट रूप में। हमारे धर्मसंघ में दोनों विधि से नियुक्ति हुई हैं।
प्रच्छन्न रूप में युवाचार्य की नियुक्ति करने वाले भी डालगणी ही है। इन्होंने अपने उत्तराधिकारी को दिखाया नहीं कि ये मेरे उत्तराधिकारी हैं। डालगणी इन दोनों विधा से हटकर आचार्य बने। उन्हें उनके पूर्वाचार्य ने नियुक्त नहीं किया। बाद में धर्मसंघ का प्रतिनिधित्व करते हुए बड़े कालूजी स्वामी रेलमगरा ने आचार्य के रूप में डालगणी के नाम की घोषणा की थी। यह उनके जीवन की विलक्षणता है। दूसरी विशेषता है कि तेरापंथ के इतिहास में व्नज वि त्ंरेंजींद से आचार्य होने वाले एकमात्र डालगणी हैं। डालगणी ही एक ऐसे आचार्य हैं, जो राजस्थान से बाहर दीक्षित हुए हैं।
आचार्यश्री डालगणी का आचार्य काल लगभग 12 वर्ष का रहा था। हमारे धर्मसंघ में हम उन्हें एक तेजस्वी आचार्य के रूप में देखते हैं। विशेष अनुशास्ता के रूप में उनका व्यक्तित्व रहा। उन्होंने मुनि अवस्था में कच्छ की यात्राएँ की। जो एक प्रभावशाली यात्राएँ संभवत: रही थीं। कच्छी-पूजा के रूप में वो विख्यात हुए।
व्यवहार की भूमिका पर देखें तो उज्जैन का अवदान है कि तेरापंथ को एक ऐसा साधु मिला जो आगे जाकर आचार्य बना। मैं उनकी दीक्षा स्थली इंदौर जाकर आ गया। आज उनकी जन्मभूमि पर हम अवस्थित हैं। उनकी महाप्रयाण स्थली लाडनूं है, वहाँ तो हम बहुत रहे हैं। वहाँ उनके समाधिस्थल पर भी मैं गया हूँ। उनकी जन्म-स्थली आने का काम पड़ा है। मैं बारंबार परमपूज्य डालगणी का स्मरण करता हूँ।
पुनर्जन्म विकास होता है, जिसके कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ प्रबल होते हैं उसका पुनर्जन्म होता है। डालगणी के जीवन प्रसंग को समझाते हुए कहा कि बाह्य कष्ट भले ही आएँ पर साधु तो आनंद में रहता है। आपके सिद्धांत के अनुसार पुनर्जन्म नहीं है, पर हमारा सिद्धांत सही हुआ कि पुनर्जन्म है, तो आपका क्या हाल होगा?
पूज्य डालगणी एक प्रखर व्याख्यान देने वाले आचार्य थे। शरीर से अक्षम होते हुए भी उनमें व्याख्यान देने की क्षमता रहती थी। मैं डालगणी की विचरण भूमि कच्छ भी गया था। कच्छ में मुनि अवस्था में उनका प्रभावशाली विचरण हुआ था। मुनि डालगणी जी के वीरचंद भाई के साथ हुए घटना-प्रसंग को विस्तार से समझाया कि डालमुनि की बात का खंडन तो नहीं कर सकता। उनका तत्त्वज्ञान व सिद्धांत का ज्ञान अच्छा रहा होगा।
पूज्य डालगणी ने मुनि अवस्था में जितनी यात्राएँ कर ली उतनी यात्राएँ संभवत: आचार्य काल में नहीं हुई।
उज्जैन वह भूमि है, जहाँ गुरुदेव तुलसी
ने वि0सं0 2012 का चतुर्मास किया
था और आगम संपादन से जुड़ा हुआ
वह समय था। आचार्य महाप्रज्ञ जी भी
सन् 2004 में उज्जैन पधारे थे। मैं उस समय था तो आस-पास पर इंदौर-उज्जैन नहीं आ सका था। मुझे झाबूआ जिला भेजा गया था।
हमारे उज्जैन के समण भी मुनि-दीक्षा लेने वाले हैं। इनकी जन्मभूमि ही इनकी दीक्षा-भूमि संभावित हो गई है। ये 57वें वर्ष में है। इतने दिन समण के रूप में सेवाएँ दी अब ऊर्ध्वारोहण होने जा रहा है। समण सिद्धप्रज्ञ जी भी खूब साधना-आराधना करते रहें। अच्छी से अच्छी सेवा देने की, सेवा करने की भावना रहे। पूज्यप्रवर ने स्थानीय श्रावक-श्राविकाओं को गुरुधारणा स्वीकार करवाई।
पूज्य श्री डालगणी की जन्म-स्थली पर पूज्यप्रवर द्वारा सम्मुचारित दोहे
डालचंद गुरुदेव का जन्म स्थान विशेष।
तेजस्वी गुरुदेव का स्मरण करें निर्व्याध।
उज्जैयनी पावनपुरी, रहे सभी अकलेश।
पायें पावन प्रेरणा, सिद्ध बने सब काज॥
साधुवृंद है साथ में,
एक समण भी साथ।
कृपा दृष्टि प्रभु की रहे,
महाश्रमण सिर हाथ॥
पूज्यप्रवर के स्वागत में समण सिद्धप्रज्ञ जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। प्रवास व्यवस्था अध्यक्ष संजय मेहता, तेरापंथ युवक परिषद, महिला मंडल से डॉ0 वीरबाला, तेरापंथ सभा से विनोद पीपाड़ा एवं ज्ञानशाला ने पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना की।