
संयम और त्याग में प्रवृत्त आत्मा है हमारी मित्र : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जिनवाणी की अमृतवर्षा करते हुए फरमाया कि शास्त्रों में मित्र का उल्लेख हुआ है। इस संसार में लोग मित्र बनाते हैं, और मित्रता के पीछे कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होता है, क्योंकि मित्र से अवसर आने पर सहायता की आशा की जाती है। शास्त्रों में एक विशिष्ट बात बताई गई है—पुरुष! तुम ही तुम्हारे मित्र हो। फिर बाहर मित्र की खोज क्यों कर रहे हो? सबसे उत्तम मित्र हमारी आत्मा ही हो सकती है, और सबसे बड़ा शत्रु भी हमारी आत्मा ही बन सकती है। हमें जो सुख-दुःख प्राप्त होते हैं, उनका वास्तविक कारण भी हमारी आत्मा ही है। यदि आत्मा सद्भावों में प्रवृत्त है, तो वह हमारी मित्र है, और यदि वह दुष्प्रवृत्तियों में लिप्त है, तो वह हमारी शत्रु है। जो आत्मा अहिंसा में प्रवृत्त है, संयम और तपस्या में लगी है, वह हमारी मित्र है। वहीं, जो आत्मा पाप में प्रवृत्त है, वह हमारी शत्रु है। इसलिए हमें क्षमा भाव रखना चाहिए और धर्म-अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति साधु बन जाए और अंतिम श्वास तक अपने साधुपन को निभा ले, तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। सभी के लिए साधु बनना कठिन हो सकता है, लेकिन श्रावक अणुव्रती तो बन ही सकते हैं। उन्हें सामायिक और संवर करना चाहिए।
गृहस्थ जीवन में आत्मा को मित्र बनाने के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना आवश्यक है। हमें छोटे-छोटे त्याग करने का प्रयास करना चाहिए और अपनी शक्ति को त्याग एवं तपस्या में लगाना चाहिए।
धर्म का संचय करें और धर्म का टिफिन भरने का प्रयास करें, ताकि वह अगले जन्म में भी हमारे काम आ सके। यह नहीं पता कि भविष्य में क्या होने वाला है, इसलिए हमें अपनी आध्यात्मिक तैयारी बनाए रखनी चाहिए। यदि हम प्रतिदिन धर्म की कमाई करते रहें, तो आध्यात्मिक संचय अवश्य होगा। हमें आत्मा को अपना सच्चा मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त पूज्यवर ने द्वारा नवदीक्षित मुनि कैवल्यकुमारजी को पाँच महाव्रतों तथा छठे रात्रि भोजन विरमण व्रत का विस्तृत बोध देते हुए उन्हें छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रदान किया। इस अवसर पर कच्छ विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर मोहनभाई पटेल ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त कीं। पूज्यवर ने उन्हें आशीर्वचन देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के माध्यम से विद्यार्थियों को न केवल ज्ञान, बल्कि उत्तम संस्कार भी प्राप्त होने चाहिए। पुलिस इंस्पेक्टर हार्दिक त्रिवेदी ने भी अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।