धन से नहीं, धर्म से संपन्न होना है बड़ी बात

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धन से नहीं, धर्म से संपन्न होना है बड़ी बात

मुनि सुमतिकुमार जी ने तेरापंथ भवन में संथारा साधिका पानी देवी मालू की गुणानुवाद सभा में कहा कि भगवान महावीर की वाणी है - आत्मा ही कर्ता है और आत्मा ही भोक्ता है। जन्म से मृत्यु के बीच का नाम है जीवन। हम सबको यह विचार करना चाहिए कि हम अपनी आत्मा के लिए क्या कर रहे हैं ? यदि हमने अपनी आत्मा के लिए कुछ नहीं किया तो जीवन में पाप कर्मों का क्षय नहीं कर पाएंगे। हमें आत्मा को हल्का करने के लिए त्याग, तपस्या, ध्यान, स्वाध्याय करते रहना चाहिए। धन से संपन्न होना एक बात है पर धर्म से संपन्न होना बड़ी बात है। हमें सहनशीलता, धैर्य, समता भाव को बढ़ाना चाहिए। मुनि श्रेयांस कुमारजी ने श्रावक के लिए संथारे का महत्व बताया। जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि जैन दर्शन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी कार्य वैज्ञानिक ढंग से संपादित करने की विधि है। मृत्यु को महोत्सव मनाने की कला केवल जैन दर्शन में ही है। तेरापंथी सभा के मंत्री जतन लाल संचेती ने संचालन करते हुए अपने विचार रखे।