संघ है तो मर्यादा है, और मर्यादा है तो संघ है

संस्थाएं

संघ है तो मर्यादा है, और मर्यादा है तो संघ है

आचार्य श्री भिक्षु द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित और श्रीमद् जयाचार्य द्वारा सृजित तेरापंथ धर्म संघ की आन-बान-शान का प्रतीक 161वां मर्यादा महोत्सव गंगाशहर के तेरापंथ भवन में चतुर्विध धर्म संघ की उपस्थिति में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। समारोह को संबोधित करते हुए उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने कहा कि तेरापंथ धर्म संघ के प्रथम आचार्य भिक्षु ने वि. सं. 1859 की माघ शुक्ल सप्तमी को मर्यादा पत्र की रचना की, जो मात्र एक पन्ने का दस्तावेज होते हुए भी 222 वर्षों से तेरापंथ धर्म संघ को अनुशासित एवं व्यवस्थित बनाए रखने में सहायक रहा है। तेरापंथ धर्म संघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य ने वि. सं. 1921 में बालोतरा में मर्यादा महोत्सव का शुभारंभ किया था, जो आज तक अनवरत रूप से मनाया जा रहा है।
साध्वी चरितार्थप्रभाजी ने कहा कि संघ का महत्व तब होता है जब वह अनुशासन और मर्यादा के साथ साधना का उचित वातावरण प्रदान करता है। संघ व्यक्ति को उसकी अंतिम मंज़िल मोक्ष तक पहुँचाने में सहायक बनता है। उन्होंने कहा, संघ है तो मर्यादा है, और मर्यादा है तो संघ है। साध्वी प्रांजलप्रभा जी ने कहा कि जैन वांग्मय में धर्म का मूल विनय को बताया गया है। विनय का अर्थ है आचार, अनुशासन और मर्यादा। मर्यादा बनाना कठिन नहीं, बल्कि मर्यादा के प्रति निष्ठा बनाए रखना कठिन है। जो व्यक्ति मेधावी होता है, वह मर्यादा का पालन करता है। दुनिया की कोई भी वस्तु मर्यादा के बिना सुरक्षित नहीं रह सकती। जो अनुशासन से जुड़ा रहता है और मर्यादा की डोर से बंधा रहता है, उसका चहुंमुखी विकास होता है।
मुनि सुमति कुमार जी ने मर्यादा महोत्सव पर अपने विचार व्यक्त किए और कार्यक्रम का संचालन किया। मुनि श्रेयांस कुमार जी ने मुक्तकों के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किए, तथा साध्वी ललितकला जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर जैन लूणकरण छाजेड़ ने अपने विचार रखते हुए शिवा बस्ती में पूनमचंद आशकरण कमल बोथरा परिवार की ओर से तेरापंथ भवन निर्माण के लिए भूमि एवं भवन निर्माण की घोषणा की। पूनमचंद-मंजूदेवी का तेरापंथी सभा, तेयुप एवं महिला मंडल द्वारा अभिनंदन किया गया।