अहंकार व ममकार रूपी बीमारी को मिटाने की है मर्यादा औषधि

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अहंकार व ममकार रूपी बीमारी को मिटाने की है मर्यादा औषधि

अहंकार और ममकार का संयम ही सबसे बड़ी साधना है, और मर्यादाएं इन्हें मिटाने की रामबाण औषधि हैं। अहंकार के सात प्रकार बताए गए हैं, और किसी भी प्रकार की क्षमता या उपलब्धि का अहंकार व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम गुरु, महामना आचार्यश्री भिक्षु ने अपनी अंतरदृष्टि से समस्याओं का निराकरण किया, जिसके परिणामस्वरूप एक नए तंत्र की रचना हुई, जिसे तेरापंथ के नाम से जाना गया। जिस संघ में आज्ञा, मर्यादा, अनुशासन, समर्पण और व्यवस्थितता होती है, वह दीर्घजीवी बनता है। आत्म-नियंत्रण और अनुशासन जीवन की महान उपलब्धियों में से एक हैं। सहनशील व्यक्ति निखरता है, जबकि सहनशक्ति के अभाव में व्यक्ति बिखर जाता है।
उपरोक्त विचार साध्वी प्रबलयशाजी ने 161वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर तेरापंथ भवन में आयोजित समारोह में व्यक्त किए। आपने कहा कि मर्यादाओं का तेज अपार और अनुशासन अनुपम द्वार है। मर्यादा एक ऐसा संगीत है, जो हमारी इंद्रियों को तृप्त करता है। मर्यादा और अनुशासन जीवन के लिए प्राण के समान हैं, जबकि विनय, वात्सल्य, सेवा और सामंजस्य शरीर व इंद्रियों की ऊर्जा के समान हैं। इस अवसर पर मर्यादा-पत्र का वाचन किया गया। साध्वी सुयशप्रभाजी ने अपने संयोजकीय वक्तव्य में तेरापंथ धर्मसंघ की विशिष्ट परंपराओं का उल्लेख किया। साध्वी सौरभयशाजी और साध्वी सुयशप्रभाजी ने मर्यादा महोत्सव के स्वरूप, इतिहास और महत्व को रोचक शैली में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में स्थानीय श्रावक समाज, विशिष्ट अतिथि और आसपास के श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन सामूहिक संघगान और श्रावक निष्ठा पत्र के वाचन के साथ हुआ।