
कषाय उपशमन की साधना है प्रेक्षाध्यान
मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में प्रेक्षा फाऊन्डेशन के निर्देशन में व तेरापंथ सभा द्वारा डायमण्ड सिटी साउथ में त्रिदिवसीय प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का भव्य आयोजन हुआ। जिसमें 45 से अधिक संभागियों ने उत्साह व निष्ठा के साथ भाग लिया। इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा धर्म उत्कृष्ट मंगल है, शोधन व मुक्ति का पथ है। अहिंसा, संयम और तप धर्म के लक्षण है। धर्म के दो भेद हैं- संवर और निर्जरा। निर्जरा का एक भेद ध्यान है। ध्यान निवृत्ति व जागरूकता की साधना है। ध्यान में भावक्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार व मितभाषण का विशेष महत्त्व है। प्रेक्षाध्यान कषाय उपशमन, विषय वमन की साधना है। कायोत्सर्ग से व्यक्ति की कर्मजा शक्ति बढती है, श्वास प्रेक्षा से एकाग्रता व स्मरणशक्ति का विकास होता है और ज्ञाता द्रष्टाभाव का विकास होता है। निरन्तर ध्यान की साधना से अपूर्व आनंद और शांति का अनुभव होता है। मुनिश्री ने सभी संभागियों के प्रति आध्यात्मिक मंगला कामना व्यक्त करते हुए प्रेरणा दी कि सभी निरन्तर ध्यान का अभ्यास करते रहें। मुनिश्री ने ध्यान के प्रयोग कराए। इस अवसर पर संभागियों ने अपने अनुभव सुनाए। अंजु कोठारी व नीता जैन ने प्रशिक्षण दिया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष अशोक पारख, हनुमानमल छाजेड़, योगा टीचर कुलवंत सिंह, रिकु सिंह, मीनाक्षी छाजेड़ ने विचार रखे।