स्मृति सभा का हुआ आयोजन

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गंगाशहर।

स्मृति सभा का हुआ आयोजन

उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कुमलकुमारजी, मुनि श्रेयांस कुमारजी, केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञाजी, साध्वी लब्धियशाजी, साध्वी ललितकलाजी के सान्निध्य में ‘शासनश्री’ साध्वी ज्योतिश्रीजी की स्मृति सभा गंगाशहर सेवा केन्द्र शान्तिनिकेतन में रखी गई। मुनि कमलकुमारजी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा- जो सदा तप, जप, ध्यान, स्वाध्याय में लीन रहता है वह अपने आप में लीन रहता है। जो अपने में लीन रहता है उसके कर्म क्षीण होते हैं। उन्होंने कहा कि साध्वी ज्योतिश्री जी ने अध्यात्म की ज्योति जलाकर अपना पथ प्रकाशित कर दिया। मुनिश्री ने साध्वीश्री की स्मृति में चार लोगस्स का ध्यान करवाकर सादर श्रद्धांजलि अर्पित की। केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञाजी ने कहा - संत वह होता है जो शांत होता है। जो शांत होता है उनके चारों गतियों का अंत होता है।
साध्वी ज्योतिश्रीजी ने उपशम कषायी होकर संसार भ्रमण को सीमित कर लिया। साध्वी ललितकलाजी जी ने कहा- हीरा कहीं भी रहे उसकी कीमत घटती नहीं है। संत जहां भी रहे, जहां भी जाए, सबका भला होता हो। साध्वी लब्धियशाजी ने कहा कि साध्वी ज्योतिश्रीजी के बाहरी सौंदर्य के साथ-साथ आन्तरिक सौन्दर्य भी अनुपम था। सहज, सरलता, अनासक्ति, निर्लिप्तता, शांत सहवास, मृदु भाषी, स्मित वदन उनकी पहचान थी। इस अवसर पर ‘शासनश्री’ साध्वी कुन्थुश्रीजी, ‘शासनश्री’ साध्वी मंजुरेखाजी, साध्वी प्रांजलप्रभाजी द्वारा प्रदत्त संदेश का वाचन साध्वी सुमंगलाश्रीजी व गीत का संगान पवन छाजेड़ ने किया। साध्वी मृदुलाजी, साध्वी ध्रुवरेखाजी व समणी चैतन्य प्रज्ञाजी ने अपने विचार रखे। साध्वी वृंद ने समूह गीतिका की सुन्दर प्रस्तुति दी। इसी क्रम में तेरापंथ न्यास के ट्रस्टी जैन लूणकरण छाजेड़, महासभा के कार्यकारिणी सदस्य भैंरूदान सेठिया, तेरापंथी सभा के मंत्री जतनलाल संचेती, तेयुप के उपाध्यक्ष ललित राखेचा, परिवार की तरफ से उपासक इंदरचंद बैद ने श्रद्धांजलि अर्पित की। संचालन मीनाक्षी आंचलिया ने किया।