केवल मनुष्य जीवन ही मोक्ष का मार्ग दिखा सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
मनासा, 4 जून, 2021
मालवा क्षेत्र काधार जिला जो राजा भोज की राजधानी थी। राजा भोज विद्वानों का बहुत सम्मान करता था। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: मनासा पधारे। परमपूज्य ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमने मानव जीवन पाया है और मानव शरीर पाया है। मानव का जो ये स्थूल शरीर है, वह औदारिक शरीर होता है। औदारिक शरीर भले हाड़-मांस का पुतला हो, गंदगी भी इसके भीतर होती है, परंतु इसके बाद मनुष्य का यह शरीर बड़ा महत्त्वपूर्ण है।
विशेष महत्त्वपूर्ण शरीर इसलिए की इस शरीर के द्वारा मनुष्य साधना करके इसी जीवन के बाद मुक्तिश्री का वरण किया जा सकता है। जितनी उत्कृष्ट कोटि की साधना मानव कर सकता है, उतनी उत्कृष्ट साधना अन्य औदारिक शरीर वाले प्राणी नहीं कर सकते न वैक्रिय शरीर वाले देव या नारकीय जीव कर सकते हैं।
कई बातों में नारकीय जीवों और देवों के नियम कई-कई समान से होते हैं। नारकीय जीवों में भी अवधिज्ञान या विभंग अज्ञान होता है, देवों में भी अवधिज्ञान और कुछ विभंग अज्ञान होता है। नारकीय जीवों और देवों में उत्कृष्ट चार गुणस्थान हो सकते हैं।
नारकीय जीव हैं, वे मरकर वापस नरक में पैदा नहीं होते न देव गति में। वैसे ही देवता भी मरकर न देवगति में पैदा होते हैं, न नरक में। दोनों वैक्रिय शरीरधारी हैं। नारकीय जीवों से निकलकर कोई तीर्थंकर बन सकता है, तो देवों से भी आकर के कोई तीर्थंकर बन सकता है। ऐसे अनेक समान नियम देवों और नारकीय जीवों पर लागू होते हैं। देव और नारक भी उस भव के बाद मोक्ष में नहीं जा सकते। मोक्ष में उन्हें जाना है, तो मनुष्य गति से ही जा सकते हैं।
मनुष्य का औदारिक शरीर मोक्ष ले जाने वाला बन सकता है। यह शरीर एक नौका है, जीव है, वो नाविक है। संसार का जन्म-मरण चक्र अरणव-सागर है। महर्षि लोग हैं, वो इस सागर को तर सकते हैं। कारण महर्षि इस नौका का बढ़िया उपयोग करते हैं। नौका है, नौका में बैठोगे तो पार पहुँचोगे। हर कोई आदमी नौका में नहीं बैठता, महर्षि ही बैठते हैं। वे इसमें बैठकर संसार समुद्र को पार कर मुक्तिश्री का वरण कर लेते हैं।
हमारा यह औदारिक शरीर है, उसमें एक स्थिति यह है कि इसमें अक्षमता आ सकती है। असमर्थतता कभी आ जाती है। शास्त्र में कहा गया है कि तीन रूपों में अक्षमता आ सकती है। पहली अक्षमता है, बुढ़ापा पीड़ित करने लग जाता है। उम्र से बुढ़ापा आना एक बात है, पर वो पीड़ित करने लगे वो अलग बात है।
दूसरी अक्षमता हैव्याधि। शरीर में व्याधि बढ़ जाए, ज्यादा उग्रता धारण कर ले तो अक्षमता बन जाती है। कोरोना जैसी बीमारी में हमारा अभय का, समता का भाव रह सके। स्वाध्याय, जप करते रहें तो धर्म का लाभ उठाया जा सकता है। तीसरी बात हैइंद्रियाँ हीन न पड़ें। इंद्रिय शक्ति क्षीण हो जाए, तो शरीर में असमर्थता आ सकती है।
गुरुदेव तुलसी ने कोलकाता और दक्षिण भारत की लंबी यात्राएँ अपने जीवन-काल में की थीं, कारण शरीर में सामर्थ्य था। हमारे नवदीक्षित साधु और साध्वी इनको नव जीवन मिला है, ज्यादा काल तक समर्थ रह सके वे सामर्थ्य का सेवा में, अच्छे काम में उपयोग करें।
सेवा भी धर्म है, स्वाध्याय भी धर्म है। इनमें समय लगाया। सेवा के अनेक रूप हो सकते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी कितनी बौद्धिक सेवाएँ दी थीं। वृद्ध, ग्लान और शैक्ष की सेवा करना भी बड़ी सेवा है। तीन चाकरी कर संघ का ॠण उतर जाए, यह भावना रहे। अपने साझ में व दूसरों की सेवा की जा सकती है।
किसी की परोटना भी सेवा है। चित्त समाधि देना भी सेवा है। लोगों को बोध देना भी सेवा है। किसके लिए क्या सेवा करनी उचित है, वह भी महत्त्वपूर्ण है। हम हमारे शरीर बल का सेवा में, साधना में यथोचित उपयोग करें। हमारे नवदीक्षित साधु-साध्वी भी अपने सामर्थ्य का अच्छा उपयोग करने का लक्ष्य रखें, शुभेच्छा।
पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित साध्वी को छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण करवाते हुए पाँचों महाव्रतों एवं छठे व्रत रात्रि भोजन विरमण को विस्तार में समझाया एवं तीन करण-तीन योग से यावज्जीवन के लिए त्याग करवाया। अतीत में हुए दोषों की निंदा-गृहा करवाई एवं महाव्रतों में उपस्थित करवाया। नव दीक्षित साध्वी ने सरलमन से महाव्रतों एवं रात्रि भोजन विरमण व्रत को स्वीकार किया। नवदीक्षित साध्वी जी ने सभी संतों को वंदना कर सुखसाता पृच्छा की। वयोवृद्ध मुनि धर्मरुचि जी स्वामी ने नवदीक्षित साध्वी के प्रति संतों की ओर से मंगलकामना की।
शासनश्री साध्वी कमलप्रभा जी की स्मृति सभा
कुछ दिन पूर्व साध्वी कमलप्रभा जी का भीलवाड़ा में देहावसान हो गया था, हम उनकी स्मृति सभा कर रहे हैं। उनकी 2010 में गुरुदेव तलुसी के हाथों उदयपुर में दीक्षा हुई थी। उनके कई नातिले चारित्रात्माएँ हैं। वे रंगाई-सिलाई में
निपुण थी। साधना भी अच्छी की थी।
वे हमारे धर्मसंघ की अग्रणी साध्वी थी। 31 मई को 11 मिनट के तिविहार संथारे में वे कालधर्म को प्राप्त हो गई थी। उनके प्रति मंगलभावना करते हुए मध्यस्थ भावना से चार लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वी कमलप्रभा जी को मैंने शासनश्री संबोधन से अलंकृत किया
था। उनकी सहवर्ती साध्वियाँ भी खूब समाधि में रहें। अच्छी सेवा और साधना करती रहें।
मुख्य नियोजिका जी एवं मुख्य मुनिप्रवर ने भी शासनश्री साध्वी कमलप्रभा जी के प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की।