भवसागर को पार करने के लिए सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् द‍ृष्टि आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भवसागर को पार करने के लिए सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् द‍ृष्टि आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 30 अक्टूबर, 2021
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सूयगाड़ो आगम में शास्त्रकार ने बताया है कि कोई मिथ्या द‍ृष्टिकोण वाला अनार्य भले वह श्रमण के रूप में ही संसार से पार पाना चाहता है वह जब तक मिथ्या द‍ृष्टि में रहेगा प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसका शास्त्रकार ने उदाहरण दिया है कि एक जन्मान्ध व्यक्‍ति है, वह किसी नौका में बैठकर नौका को चला करके पार पाने का इच्छुक है, उसका पार पा जाना असंभव या मुश्किल है। वह बीच में ही कहीं डूब सकता है, क्योंकि वह जन्मांध आदमी न तो नौका के मुख-अग्र भाग को जानता है, न उसके पृष्ठ भाग को देख पा रहा है, न वह नाव खेने के उपकरणों का उपयोग जानता है, ऐसा जात्यन्ध व्यक्‍ति नौका चलाने में असमर्थ हो सकता है। अगर वह छेद वाली नौका में बैठ जाए तो अवश्य ही डूबने वाला है। ऐसी नौका जिसकी चारदिवारी नहीं की गई है, उसका कोष्ठ भंग हो गया है, उसे आश्राविणी नौका कहते हैं। जन्मांध व्यक्‍ति आश्राविणी नौका में बैठ गया है, तो वह डूबने वाली नौका है। इसी तरह मिथ्या द‍ृष्टिकोण व्यक्‍ति जन्मांध की तरह होता है। साधु का वेश वह जन्मांध व्यक्‍ति बना भी ले तो भी छिद्र वाली या आश्राविणी नौका में बैठने से डूबने वाला ही है, उसका कल्याण होने वाला नहीं है।  इसलिए हमारे जीवन में और मूल अनंतकाल में सम्यक् ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है, महत्त्वपूर्ण है। सम्यक् द‍ृष्टिकोण या सम्यक् ज्ञान नहीं है तो उस अवस्था में मोक्ष मिल ही नहीं सकता। मिथ्यात्वी है कुछ अच्छा आचरण करता है, तो कुछ अंशों में धर्म निर्जरा का लाभ मिल जाए पर संवर धर्म की आराधना से वह वंचित रहता है। प्रथम चार गुण स्थानों में संवर धर्म नहीं होता है। पर निर्जरा धर्म हो सकता है। मिथ्यात्वी बाल तपस्वी है, उसकी भी कर्म निर्जरा हो सकती है। ऐसा मिथ्यात्वी जो अभव्य है, कभी मोक्ष जा ही नहीं सकता, वह भी इतना पुण्योपार्जन कर लेता है कि नव-ग्रैवेयक तक का आयुष्य बंधन वो कर सकता है। चलाने वाला व्यक्‍ति चक्षुष्मान हो, नींद में न हो, नशे में न हो, जागरूक हो तो वहाँ पार पहुँच सकता है। नैत्रीवर्ग अच्छा हो तो समाज या राष्ट्र को आगे बढ़ा सकता है? सम्यक्त्व के बिना भले चारित्र आ जाएँ काज नहीं सरता है। सम्यक्त्व है, तो अच्छी साधना करें, सहन करें तो सवाया लाभ हो सकता है। अज्ञानता एक प्रकार की अंधता होती है। प्रवचन श्रवण या साहित्य पढ़ने से अज्ञानता दूर हो सकती है। अज्ञान के अंधकार से अच्छे बने हुए लोग हैं, उनको ज्ञान की अंजन श्‍लाका से भीतर के नैत्र को खोल देते हैं, ऐसे गुरु को नमस्कार है। गुरु का इसलिए महत्त्व है कि वो अंधकार को दूर करने का काम करते हैं।
गुरु का एक अर्थ हैबड़ा, भारी। दूसरा अर्थ हैगु का अर्थ हैअंधकार। रु का अर्थ हैउसको दूर करने वाला। गुरु त्यागी और संयमी भी हो तो अच्छा पथ-दर्शन मिल सकता है। ऐसे गुरु से सम्यक्-ज्ञान और सम्यक् दिशा निर्देश मिल सकता है। सम्यक् ज्ञान सम्यक् चारित्र को बढ़ाने वाला बन सकता है। हम अपने जीवन में सम्यक् ज्ञान बढ़ाने का प्रयास करें, यह काम्य है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि साधु अठारह पाप से बचते हुए भिक्षु प्रतिमा की आराधना करता है, यह एक प्रकार का विनय है। आगमों में कहा गया है कि विनीत कौन? विनीत वह होता है, जो गुरु द‍ृष्टि की आराधना करता है। साध्वीवर्या जी ने कहा कि तीव्र कषाय वाले व्यक्‍ति अपनी प्रशंसा, आत्मश्‍लाघा ज्यादा करते हैं। कुछ व्यक्‍ति अपनी प्रशंसा बोलकर करते हैं, तो कुछ व्यक्‍ति अपने आचरण से करते हैं। आत्म-श्‍लाघा निकृष्ट कार्य हैं। गुजरात सरकार के संगठन मंत्री रत्नाकर पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में दर्शनार्थ पधारे। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि राजनीति एक सेवा का माध्यम है। राजनीति में नैतिक मूल्य अच्छे बने रहें।
रत्नाकर जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा उनका सम्मान किया गया। जैविभा द्वारा प्रकाशित पुस्तक आत्म विश्‍लेषण के सौलह सूत्र जो मुनि स्वस्तिक कुमार जी की कृति है, पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में जैविभा के पदाधिकारियों द्वारा लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि यह पुस्तक है। आत्म-विश्‍लेषण तो अच्छी चीज है, स्वयं की तटस्थ अनुप्रेक्षा करें। पाठकों हेतु अच्छी उपयोगी बने, ऐसी मंगलकामना। साध्वी अखिलयशा जी ने अपनी प्रस्तुति दी। भीलवाड़ा महिला मंडल द्वारा प्रस्तुति हुई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।