अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने ज्ञान रूपी दीपक जलाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 4 नवंबर, 2021
वर्तमान के महावीर, जैन धर्म के प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने दीपावली पर अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज भगवान महावीर का परिनिर्वाण दिवस है। कार्तिक कृष्णा अमावस्या है। वर्तमान अवसर्पिणी के इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। उन्होंने जन्म लिया चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को। गार्हस्थ्य में भी लगभग 30 वर्ष तक रहे।
लगभग साढ़े बारह वर्षों तक मुनीत्व के साथ साधनाकाल बीता। इतने उपसर्ग आए और वे अपनी साधना में रहे। वैशाख शुक्ला दशमी को उन्होंने कैवल्य को प्राप्त किया। आज अमावस्या की अंधेरी रात है। ये अंधेरी रात भी एक त्योहार बन गया। यों अमावस्या को अच्छा नहीं माना गया है, पर भगवान महावीर के साथ आज का दिन जुड़ जाने से मानो ये तिथि भी धन्य हो गई।
आज के दिन जगमगाहट होती है, दीपक प्रज्ज्वलित होते हैं। कहा गया है कि अन्याय भी न्याय हो जाता है, जब तेजस्वी व्यक्ति उसे स्वीकार कर लेते हैं। अमावस्या काली रात है, पर महोत्सव बन गई कारण वह तेजस्वी दीपों के साथ जुड़ गई। दीपकों ने इसे अपना लिया। भगवान महावीर महातेजस्वी थे, उनके साथ यह रात्रि जुड़ गई, यह भी मानो महोत्सव बन गई।
दीपावली के दिन-दीपक जलते हैं। टिमटिमाते दीपक आँखों को भी अच्छे लगते हैं। दीपावली ज्योति पर्व है। भगवान महावीर महाज्योति पुरुष थे। वो भाव ज्योति तो ऊपर चली गई। भगवान महावीर की परंपरा भी आगे चली गई है। कितने-कितने आचार्य और साधु-साध्वियाँ हुए हैं। आज भी उनके शासन में साधनाशील और श्रुतसंपन्न हैं। आगमों के माध्यम से भी भगवान की ज्योति जल रही है। आज का दिन अंधकार में प्रकाश करने का दिन है। अज्ञान के अंधकार में ज्ञान का दीया जलाएँ। स्वाध्याय अपने आपमें ज्योति है, स्वाध्याय का दीया जलता रहे। आगमों के संशोधन, संपादन में कितना श्रम गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी का लगा होगा। आज जो आगम हमारे पास है, एक बहुत बड़ी उपलब्धि में उनका अनुग्रह रहा है। अब भी काम अवशेष चल रहा है। शीघ्र यह कार्य अशेष को प्राप्त करे। गृहस्थ भी स्वाध्याय का लाभ ले सकते हैं। आचार्य भी दीप के समान होते हैं। दीये से दीया जले। भारत में तो आज यह विशेष पर्व होता है। आतिशबाजी में भी संयम रहे, यह वांछनीय है। कई मिठाइयाँ खाते हैं, तो कई तप रूप में तेले-उपवास भी करते हैं। हम दीपावली को आध्यात्मिक रूप में मनाएँ। भगवान महावीर का स्मरण करें। लोगुत्तमे समणे नाय-पुत्ते का जप करें। ऐसा भी चलता हैमहावीर स्वामी केवल ज्ञानी, गौतम स्वामी चऊ नाणी। महावीर पहुँचे निर्वाण, गौतम पाया केवलज्ञान। यह भी आम भाषा में चलने वाला जप है। हम भी यहाँ आध्यात्मिक साधना को आज के दिन बढ़ाने का प्रयास करते रहें। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि आज भगवान महावीर का निर्वाण दिवस है, प्रकाश का पर्व है, प्रकाश की आराधना का पर्व है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन प्रकाशमय हो। जीवन में उजाला हो, उसके लिए आवश्यक है, साधना और संयम पथ। परमपूज्य आचार्यप्रवर के दीक्षा के 50 वर्ष पूरे होने वाले हैं। इस 50वें वर्ष को संघ की ओर से किस रूप में मनाएँ। आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याणक के रूप में इसे मनाया जाए। इसकी घोषणा तो परमपूज्य करवाएँगे, हम तो निवेदन कर रहे हैं। इसके लिए साधु-साध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं के लिए 51-51 संकल्प तय किए गए हैं। आचार्यप्रवर चतुर्विध धर्मसंघ की प्रार्थना को स्वीकार करवाएँ।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि भक्तामर स्त्रोत में लिखा है कि प्रभो! इस जगत को प्रकाशित करने वाले एक अलौकिक दीपक हो। लौकिक दीपक में बाती के साथ धुआँ भी निकलता चला जाता है। लेकिन अलौकिक दीपक निर्धूम होता है।
मुनि सुरेश कुमार जी ने आगे साधना करने की भावना श्रीचरणों में रखी। साध्वी शारदाश्री जी आदि साध्वियों ने दीपावली का गीत गाया। बजरंग जैन ने मुमुक्षु बाईयों को विदेश भेजने की तैयारी करने के लिए पूज्यप्रवर से अनापत्ति प्रदान करवाने के लिए अपनी भावना रखी।
मुमुक्षु बाईयों को धर्मप्रचार के लिए विदेश भेजने की अनुमति
मुमुक्षु बाईयाँ पा0शि0 संस्था में शिक्षण प्राप्त करती है, उनका भी देश-विदेश में उपयोग हो। मुमुक्षु बाईयों का उपयोग यथा औचित्य, यथानुकूलता विदेश में भी हो। विदेश में भी जैन समाज के लोगों में धर्म की ज्योति जले। पा0शि0 संस्था यह कार्य करती है, तो कोई आपत्ति वाली बात नहीं है। इनका शिक्षण हो जाए, फिर इनका उपयोग हो। मुमुक्षु बाईयाँ भी अपना ज्ञान का, साधना का विकास करें। योग्यता प्राप्त करें। साध्वियों, समणियों, मुमुक्षुओं, श्राविकाओं को साध्वीप्रमुखाश्री जी ही संभालने वाले हैं। मैं मुमुक्षु बाईयों की धार्मिक सेवा की अनुमोदना करता हूँ। हम भी इसकी आज स्थापना करते हैं कि मुमुक्षु बाईयों का भी विदेश की धरती पर यथोचित्य उपयोग हो। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।