मोक्ष रूपी मंजिल पाने के लिए सत्पुरुषार्थ करते रहें : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 5 नवंबर, 2021
अंतर की प्यास को बुझाने वाले, परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने गुजराती नववर्ष-बेसता वर्ष के उपलक्ष्य में प्रात: 5:15 पर विशेष मंगलपाठ की कृपा करवाई। कला रात्रि में दीपावली पर्व के उपलक्ष्य में भी सायं लगभग 7:15 पर विशेष मंगलपाठ की कृपा करवाई थी। सभी के आध्यात्मिक विकास की मंगलकामना प्रेषित करवाई थी। अमृत देशना प्रदान करते हुए महामनीषी ने फरमाया कि सूयगड़ो आगम में साधु के लिए बताया गया हैसाधु क्या करे और साधु कैसा होना चाहिए? इन दो बातों की जानकारी प्रस्तुत श्लोक से प्राप्त की जा सकती है। साधु समिति युक्त होना चाहिए। पाँच समितियों से युक्त होना चाहिए। पाँच समितियों की साधना करने वाला होना चाहिए। जो प्राणियों की हिंसा न करे, वह समित कहलाता है। पाँच समितियाँइर्या, भाषा, ऐषणा, आदान निक्षेप और उत्सर्ग है। ये समितियाँ अहिंसा से जुड़ी हुई है। समितियाँ तो सहायक है, पर मूल चीज है कि साधु पाँच संवरों से संवृत्त होना चाहिए। अयोग संवर तो साधु में चौदहवें गुणस्थान में ही उपलब्ध होता है। चौदहवाँ गुणस्थान हुआ और सिद्धि प्राप्त हो जाती है। पाँच महाव्रत पाँच संवर है। पाँच महाव्रतों में विशेषतया अहिंसा पालन में पाँच सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। पाँच समितियाँ सुरक्षाकर्मी हैं। साधु को भी सुरक्षा चाहिए। कई बार मिथ्या-दंड भी मिल सकता है। अपराधी छूट जाता है। साधु भी श्रावकों के समाज में रहता है। गृहस्थ तो परिवार, समाज से बँधे हुए होते हैं। साधु अप्रतिबद्ध रहे, आसक्ति में न जाएँ, अनासक्त रहे। साधु अंतिम समय तक मोक्ष के लिए साधना करता रहे।
भगवान महावीर का परिनिर्वाण हुआ था, पर उसके लिए उन्होंने कितना पुरुषार्थ किया था। अनेक जन्मों तक पुरुषार्थ-साधना की। करते-करते एक समय में काम हो गया और मुक्ति प्राप्त हो गई। कार्तिक अमावस्या की रात्रि में परम प्रभु की आत्मा इस नश्वर देह से मुक्त हो गई। गौतम स्वामी को भी आलोक मिल गया। भगवान के वे प्रमुख शिष्य गणधर थे पर भगवान की विद्यमानता में उनको कैवल्य प्राप्त नहीं हुआ। पर उनका सान्निध्य उन्हें बहुत प्राप्त हुआ। भगवान महावीर की मुक्ति मानो गौतम स्वामी की राग मुक्ति में कारण बन गई। अमोक्ष-अंतिम क्षण तक साधु अप्रतिबद्ध रहता हुआ मोक्ष के लिए परिवर्जन-पुरुषार्थ करता रहे। साधु तो करे ही, आप लोग गृहस्थ है, उनको भी जितना हो सके, अपनी सीमा में पुरुषार्थ कर सकता है। गृहस्थ भी आगे बढ़ सकता है। गृहस्थ में रहते हुए भी चेतना का तादात्म्य मोक्ष के साथ जुड़ जाए कि मोक्ष के लिए मैं कुछ करूँ। इस जन्म में नहीं तो आगे भी मोक्ष तो मिल सकेगा। हम अध्यात्म और मोक्ष की साधना के लिए सत्-पुरुषार्थ करते रहें, जब तक मंजिल न मिल जाए, यह काम्य है। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि स्वाध्याय के समान कोई भी तप नहीं है। स्वाध्याय यानी जो श्रुत धर्म है। सामायिक से लेकर द्वादशांग आगमों का परिशीलन करना भी स्वाध्याय के अंतर्गत आता है। प्रवचन यानी श्रुत रूपी धर्म है, वही वास्तव में स्वाध्याय के रूप में माना जाता है। स्वयं का जो अध्ययन करता है, वो वास्तव में स्वाध्याय कहलाता है। पुस्तकों के पठन को भी स्वाध्याय कहा गया है। मनन आच्छा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।