विवेक केंद्रित पुरुषार्थ से कार्य की निष्पत्ति जल्दी आ सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण
बिरमावल, 19 जून, 2021
समता के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी मालवा यात्रा के अंतर्गत रतलाम जिले में विहाररत हैं। परम पावन आज प्रात: विहार कर बिरमावल पधारे। जिस व्यक्ति का जीवन संयममय होता है, उसका जीवन अच्छा होता है। शांतिदूत ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी शांति चाहता है। शांति से जीवन जीना चाहता है और शांति में रहना चाहता है।
शांति चाहता है, फिर भी कभी-कभी अशांति से आक्रांत भी हो जाता है। चित्त में अशांति हो जाती है, प्रसन्नता नहीं रहती है। आदमी शांति में कैसे रह सके। प्रयास करना आदमी का कर्तव्य होता है। प्रयास और सफलता, पुरुषार्थ और सिद्धि। पुरुषार्थ करना कुछ अंशों में आदमी के हाथ में हो सकता है, परंतु पुरुषार्थ करने पर सिद्धि मिल ही जाएगी। यह कहना कठिन है। तत्काल सफलता न भी मिले।
भले अभी तत्काल सफलता नहीं मिली पर आगे की सफलता की नींव तैयार हो जाती है। यह चुनाव के उदाहरण से समझाया कि हार तो मिल गई पर कुछ वोट तो मिले। लोगों में पहचान तो हुई। इस बार की विजय में पिछली बार की असफलता का भी काम हो सकता है। आदमी को झटपट निराश नहीं होना चाहिए।
मानकर चलें कि पुरुषार्थ कभी खाली या बेकार नहीं जाता। आज नहीं कल, कल नहीं परसों, जो किया है, उसका परिणाम तो मिलेगा ही। आदमी को पुरुषार्थ से हार नहीं माननी चाहिए। जीवन में आगे बढ़ने का प्रयत्न करते रहो। कुछ बाधाएँ भी आ सकती हैं। बाधाओं को दूर करना संभव है।
जूते पहन रखें हैं तो फिर काँटों से क्या डरना। पुरुषार्थ करने वाले व्यक्ति में थोड़ा कष्ट सहन करने का मादा होना चाहिए। थोड़े कष्ट झेल लो, आगे बढ़िया रास्ता मिलेगा। जीवन में सम्यक् पुरुषार्थ होना चाहिए। जो हितकर हो वह परिश्रम-प्रयत्न आदमी को करना चाहिए।
सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चारित्र में पुरुषार्थ करें, उस पुरुषार्थ का महत्त्व है। आगम के सूत्र में कहा गया हैतप और संयम में पुरुषार्थ करो। सम्यक् पुरुषार्थ करना हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण सूत्र बन सकता है। विवेकपूर्ण सम्यक् पुरुषार्थ करो। बोलना भी एक चीज है, मौन रखना भी एक चीज है। यहाँ यह विवेक रखें कि यहाँ बोलना हितकर है या न बोलना हितकर है।
विवेक ही धर्म है। आदमी का विवेक जागृत रहे। कवि ने कहा है कि विवेक एक चक्षु है। विवेकवंतों की संगति करो। एक आँख है, तो जिंदगी का काम तो चल सकता है। विवेकवंतों की संगति दूसरा चक्षु है। जिसके पास दोनों ही आँखें नहीं हैं, वो अगर अपराध में चला जाए तो उसे क्या दोष दें। जीवन में, कार्य में विवेक हो। पुरुषार्थ का आधार विवेक बन जाए। यह एक दृष्टांत से समझाया।
विवेक केंद्रित पुरुषार्थ हो तो कार्य की निष्पत्ति जल्दी आ सकती है। अपने विवेक को काम में लें।
आज हम बिरमावल में आए हैं। मुनि सुधांशु से जुड़ा हुआ ग्राम है। 2007 में इसकी आचार्य महाप्रज्ञ जी से दीक्षा हुई थी। गौतम और सुधांशु दोनों भाई दीक्षित हुए थे। मुनि अनुशासन और मुनि मृदु की भी साथ में दीक्षा हुई थी। दो-दो भाईयों की दो जोड़ियाँ एक साथ दीक्षित हुए थे। ये चार नचिकेता मुनि थे।
मुनि सुधांशु भी अच्छा विकास करता रहे। मन में संघ सेवा की भावना रहे। अच्छी निष्ठा, अच्छा व्यवहार, चित्त में समाधि रहे। विवेकपूर्ण सम्यक् पुरुषार्थ में जितनी संभव हो शक्ति लगाते रहें। ज्ञान का प्रकाश रहे और साथ में संयम का ब्रेक रहे तो आगे विकास हो सकता है।
इनके संसारपक्षीय नानाजी आनंदीलालजी भी मुझे स्मृति में आ रहे हैं। नानीजी सेवा करती रहती हैं।
सुधांशु के साथ में पहली बार आना हुआ है। सुधांशु चंद्रमा की तरह शीतल रहे। चंद्रमा की तरह प्रकाश भी करता रहे। दूसरों को भी प्रकाश देता रहे, अच्छी साधना चलती रहे। अच्छे तरीके से अच्छा काम करने की भावना रहे। नया समय है, नए तरीके से विकास होता रहे। सेवा, ज्ञान और स्वाध्याय का अच्छा विकास होता रहे। अनुकूलता-प्रतिकूलता किसी के आ सकती है, उसमें समता की साधना चलती रहे। हर स्थिति में शांति-चित्त समाधि रहे।
सुधांशु का जन्म दिवस भी जुड़ा हुआ है। 27 वर्ष के हो गए। खूब अच्छा काम हो। बिरमावल के लोगों में खूब अचछी धर्म की भावना बनी रहे। शासन भक्ति-सेवा की भावना रहे। पुन: आत्म उत्थान की भावना पुष्ट होती रहे। अच्छा कल्याण का काम होता रहे।
मुनि सुधांशु कुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में प्रकाश पीपाड़ा, धर्मचंद पीपाड़ा, सकल जैन श्री संघ से श्रेणिक पीपाड़ा, ज्ञानशाला की प्रस्तुत, कन्या मंडल, तेरापंथ महिला मंडल, साधुमार्गी महिला मंडल, सुरेश पीपाड़ा, विश्वास पीपाड़ा, स्कूल से गोपाल परमार, जितेंद्र पीपाड़ा, आयूष पीपाड़ा, ममता पीपाड़ा, विनीता पिपाड़ा, उत्सव प्रीति पीपाड़ा, सलौनी पीपाड़ा, कविता पीपाड़ा, कृतिका पीपाड़ा, ॠषिका पीपाड़ा, दैनिक पीपाड़ा, संयम बोहरा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।