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अहिंसा, संयम तपमय होता है धर्म
धर्म मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि धर्म स्थान में नहीं है, अपने भीतर में झांकने से ही धर्म का पता चलेगा। सब मंगलो में उत्कृष्ट मंगल धर्म है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। ये विचार मुनि सुमति कुमारजी ने ब्राह्मण सभा में उपस्थित जनमेदिनी को संबोधित करते हुए कहे। उन्होंने कहा कि संत कल्पवृक्ष होते हैं उनका स्वागत दुर्गुणों के त्याग, संयम व तप के द्वारा होना चाहिए। संतों के पास बैठने से शांति मिलती है, दीपक के प्रकाश की तरह संत अज्ञान के अंधकार को दूर करते हैं। जन-जन के मन को करुणा, शांति, मैत्री एवं सद्भावना के द्वारा हरा-भरा करते हैं। श्रावक-श्राविकाओं को साधुचर्या धर्म संघ की रीति-नीति बारे जागरूक रहने की प्रेरणा देते हुए 21 दिवसीय प्रवास का भरपूर लाभ ग्रहण करने की सलाह दी।
तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने गीतिका का संगान किया। नमन आंचलिया ने गीत, जयदेव गोयल ने वक्तव्य के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। स्थानीय सभा के सह सचिव डॉ. मुकेश जैन ने मुनिश्री के सानिध्य में होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी। कार्यक्रम संयोजक प्रदीप बोथरा ने मुनिश्री के प्रवास हेतु पूज्य आचार्य प्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। ब्राह्मण सभा की ओर से सचिव रमेश महर्षि ने मुनिश्री और सहयोगी संतों का स्वागत किया। इससे पूर्व प्रातः शोभायात्रा के साथ मुनिश्री ने अपने सहयोगी मुनि देवार्य कुमारजी एवं मुनि आगम कुमार जी के साथ ब्राह्मण सभा में प्रवेश किया।