आचार्य भिक्षु ने की  नई क्रांति

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आचार्य भिक्षु ने की नई क्रांति

जसोल। आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या ‘शासनश्री’ साध्वी जिनरेखाजी के सान्निध्य में आचार्य भिक्षु का अभिनिष्क्रमण दिवस मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत साध्वी मार्दवयशाजी ने अपने गीत के माध्यम से की। ‘शासनश्री’ साध्वी जिनरेखा जी अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु ने विक्रम संवत 1817 चैत्र शुक्ला नवमी को स्थानकवासी सम्प्रदाय से अभिनिष्क्रमण किया। आचार विचार की शिथिलता के कारण आचार्य भिक्षु ने नई क्रांति की। वे किसी नये संघ को चलाने के उद्देश्य से अलग नहीं हुए। इसलिए उन्होंने नामकरण की कल्पना ही नहीं की, पर जोधपुर में अनायास ही संघ तेरापंथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आचार निष्ठा, अनुशासन और संगठन तेरापंथ धर्मसंघ के मूलभूत आधार हैं। इसी दिन तेरापंथ का बीज वपन हुआ था जो आज वटवृक्ष का रूप ले रहा है। साध्वी मधुरयशाजी ने आचार्य भिक्षु के कर्तव्य, व्यक्तित्व को उजागर किया। कार्यक्रम का सफल संचालन साध्वी श्वेतप्रभा जी ने किया। इस अवसर पर तेरापंथ सभा अध्यक्ष भूपतराज कोठारी, पदाधिकारी सहित जसोल तेरापंथ समाज के सदस्य उपस्थित थे।