व्यक्ति का चिंतन उसे सुखी या दुखी बना सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
रानीसिंह गाँव, 17 जून, 2021
तेरापंथ के वर्तमान भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज प्रात: झाबूआ जिले से विहार किया और रतलाम जिले में आज रानीसिंह गाँव में पधारे। प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए महामनीषी ने फरमाया कि हमारे पास शरीर, वाणी और मन ये तीन प्रवृत्ति के साधन हैं। शरीर से हमारा चलना, मिलना, खाना-पीना आदि कार्य होते हैं। वाणी से बोलते हैं और मन से स्मृति, कल्याण और चिंतन करते हैं।
जीवन में हमारे लिए शरीर, वाणी और मन का महत्त्व है। कोई भी प्राणी है, इन तीनों में से शरीर का होना तो जरूरी है। वाणी और मन के बिना तो काम चल सकता है। दुनिया में कितने प्राणी ऐसे हैं, जिनके पास मन है ही नहीं। अमनस्क असंज्ञी होते हैं। कितनों के पास वाणी
भी नहीं है। न वाणी है, न मन है। केवल शरीर है।
मन, वचन और काय योग होते हैं। इस तरह हम संसारी प्राणियों को तीन भागों में बाँट सकते हैं। अनंत प्राणियों के पास केवल शरीर है। कुछ प्राणियों के पास शरीर के साथ वाणी भी है। तीसरे प्रकार के कुछ प्राणी ऐसे हैं, जिनके पास ये तीनों होते हैं। केवलज्ञानी तो न संज्ञी है न असंज्ञी है। उनसे ऊपर उठ जाते हैं।
मनुष्य भी दो प्रकार के होते हैं। संज्ञी और असंज्ञी या मन वाले और अमन वाले मनुष्य। हम मन वाले संज्ञी मनुष्य हैं, पंचेन्द्रिय हैं। हम शरीर, वाणी और मन इन तीनों साधनों से युक्त है। ये तीन साधन साधना के भी साधन बनते हैं या पाप के साधन बनते हैं। धर्म के साधन बनते हैं या अधर्म के साधन बनते हैं। इन तीनों से दोनों बातें हो सकती हैं।
शरीर हमारा दिखाई देता है। वाणी हम सुनते हैं। मन हमारा ऐसे साफ दिखाई नहीं देता, भीतर है। परंतु मन में किसी के क्या आ रहा है, थोड़ा-थोड़ा भांपा जा सकता है। बाहर के संकेतों के द्वारा मन
में क्या भाव होना चाहिए, इसका थोड़ा-थोड़ा अनुमान-ज्ञान ज्ञानी आदमी लगा सकता है।
भय, चिंता, आलस,
अमन, सुख-दु:ख हेत-अहेत।
मन महीप के आचरण,
दृग दिवान कह देत॥
भीतर मन में भय या गुस्सा है, तो कुछ संकेत मिल सकता है। चिंता में है तो उसकी बैठने की मुद्रा से अनुमान लगाया जा सकता है। प्रसन्नता-अप्रसन्नता, मूड का पता लग सकता है। आँखों, चेहरे व हाव-भाव आदि के द्वारा, शरीर की क्रिया से कुछ-कुछ अनुमान लग भी सकता है कि भीतर में इसके क्या मनोभाव चल रहा है।
बात से भी प्रबुद्ध-ज्ञानी आदमी पता लगा सकता है कि इसके मन में क्या होना चाहिए। मन एक ऐसा तत्त्व है, जिसके द्वारा बहुत सुंदर-अच्छा चिंतन किया जा सकता है। आदमी चिंतन से सुखी भी और दु:खी भी बन सकता है। हमारा चिंतन बढ़िया, प्रशस्त होगा, विचार अच्छे होंगे तो हम सुखी भी रह सकते हैं। चिंतन हमारा सकारात्मक है या नकारात्मक। यह एक दृष्टांत से समझाया कि सुख-दु:ख में समता रखनी चाहिए। जो है, उसे देखकर सुखी रहे। न होने का दु:ख न करें। चिंतन हमारा प्रशस्त हो।
जीवन में अनुकूलता-प्रतिकूलता की परिस्थितियाँ तो आ सकती हैं, संघर्ष भी आ सकते हैं, परंतु आदमी को मनोबल, समता का भाव रखना चाहिए। आदमी किसी भी क्षेत्र में काम करे, अपने अच्छे सिद्धांतों पर चले। ईमानदारी-नैतिकता का बल रखे। दुनिया में मनी पावर, मैन पावर होते हैं, साथ में मोरल पावर भी रहे। मोरेलिटी पावर आदमी का मजबूत रहना चाहिए। बेईमानी से समझौता न करें।
ईमानदारी भी एक शक्ति है। सच्चाई में परेशानियाँ तो आ सकती हैं, विरोध संघर्ष, कठिनाईयाँ आ सकती हैं, परंतु सच्चाई और ईमानदारी परास्त नहीं हो सकती। अंतिम विजय सच्चाई, ईमानदारी की होने वाली है। ‘सत्यमेव जयते।’ भारत हमारा देश है, उसके पास तीन संपत्तियाँ हैंसंत संपदा, पंथ संपदा और ग्रंथ संपदा।
संत संपदा से सदुपदेश मिलता रहे, पंथ संपदा से हमारा पथ प्रशस्त होता रहे और ग्रंथ संपदा से हमारा ज्ञान बढ़ता रहे। गृहस्थों के जीवन में मोरल वैल्यूज़ पुष्ट रहें। सच्चाई-ईमानदारी के प्रति अच्छी भावना रहे तो जीवन अच्छा रह सकता है। चेतना भी निर्मल रह सकती है।
आज रतलाम जिले में आना हुआ है। रतलाम जिले में हम कुछ दिन रहने वाले हैं। यहाँ नैतिक मूल्यों का अहिंसा-संयम का अच्छा विकास होता रहे।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में झाबुआ के सांसद गुमानसिंह ने कहा कि झाबुआ का पिछड़ापन रहने का मुख्य कारण नशा है। गुरुदेव की कृपा से यहाँ नशामुक्ति अभियान में गति आई है। नवयुवक समझे हैं और नशा छोड़ने का संकल्प भी लिया है। जीवन विज्ञान भी यहाँ बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि मैं भारत सरकार के शिक्षा मंत्री से निवेदन करूँगा कि वे शिक्षा में जीवन विज्ञान को प्रमुख स्थान दें।
पूर्व विधायिका संगीता चारेल, पूर्व विधायक पारस संकलेचा, कृषि उपज मंडी के अध्यक्ष विजय चारेल ने अपनी भावना व्यक्त की। मालवा सभा की ओर से सभी का सम्मान किया गया। मालवा सभा के अध्यक्ष-मंत्री ने पूज्यप्रवर के सलाम जिले में पधारने पर स्वागत में अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।