
रचनाएं
परम पद आराधिका हो
परम पद आराधिका हो
सत्य पथ संधायिका हो
स्वसिद्धि संचालिका हो
गुरुचरण समुपासिका हो।।
आत्मयज्ञ की वेदिका हो
कर्म-शत्रु विभेदिका हो
मंत्र पदों की सेविका हो
महाज्योति की वर्तिका हो।।
वीतराग की भूमिका हो
साधक मन की चूलिका हो
उपशम रसमय कूपिका हो
आर-पार की पूलिका हो।।
श्रमणी गण की नायिका हो
चित्त समाधि प्रदायिका हो
प्रबन्धन विधायिका हो
साधना में सहायिका हो।।
समणी वर्ग नियोजिका हो
आधी दुनिया प्रबोधिका हो
चमक-दमक विरोधिका हो
शूल-कांटे संशोधिका हो।।
गुरु-शिष्या संवादिका हो
चरण-कमल प्रसादिका हो
महाप्रज्ञ संपादिका हो
नव मूल्यों की प्रवादिका हो।।
ज्ञान चक्षु उद्घाटिका हो
सम्यग दर्शन साधिका हो
सदाचरण की पालिका हो
तपोभूमि की कारिका हो।।
महाश्रमण की चयनिका हो
स्वयं स्वयं की मालिका हो
ऊर्ध्वलक्षी अट्टालिका हो
शुभ भावों की संग्राहिका हो।।