
रचनाएं
मंगल भावां रो ले उपहार
महाश्रमण आचार्य प्रवर री आरती उतारां म्हैं,
मंगल भावां रो ले उपहार हो।।
सोने रो सूरज ऊग्यो है, भैक्षव शासन आंगण में,
दूध रो बरसे अमृत धार हो।।
छायो है सुरंगों रंग तेरापंथ शासन में,
खुशियां रो उमड्यो पारावार हो।।
गुरुदेव रे सूझ-बूझ री जावां म्हैं बलिहारी हो,
हीरो निकल्यो सुखकार हो।।
मंगल बेला में म्हैं आज मोत्यां चौक पुरावां हो,
कुंकुम रा पगल्या उतरया आंगणे।।
करो आपश्री राज जुग-जुग शासन हो सांतरी,
तेरापंथ गण री जय जय कार।।
लय - तेजा रे