
रचनाएं
ज्योति भरो ज्योतिर्धारी
महाप्रज्ञ रा सक्षम पटधर, महाश्रमण महिमाधारी।
भिक्षु री गादी दीपावै महाश्रमण युग अवतारी।।
1. गुरू तुलसी हा कुशल पारखी, थांरे कौशल ने निरख्यो,
युवाचार्य रा अंतरग सहयोगी कर पौरूष परख्यो।
चंदेरी में महाश्रमण पद सृजन हुयो शासन हरख्यो।
भादूड़ी बारस ने पाया युवराज अतिशयधारी।।
2. वैशाखी सुद दशमी ने, साध्वीप्रमुखा आह्वान करयो,
‘संघ सारथे थामो वल्गा’ उच्चस्वर संगान करयो।
जय-जय ज्योतिचरण प्रभु, जय-जय महाश्रमण मंगलकारी।।
3. मित भोजी, मित भाषी, स्वष्टवादिता प्रभु री अलबेली,
दिव्य दिवाकर, करूणा सागर अद्भुत अनुशासन शैली।
स्थितप्रज्ञता देख अलौकिक विस्मित है दुनिया सारी।।
4. इमरत झरता नयन युगल, पुण्याई रा पुतला अभिराम,
तेजस्वी आभा मण्डल ओ जन-जन री आस्था रो धाम।
देव कंवर सो रूप निरालो, जीकारो संकटहारी।
5. रहै निरामय गात्र आपरो, कोड दीवाली राज करो,
‘दीवसमा आयरिया’ गणिवर गण में नव उद्योत भरो।
करै कामनां थारी किरणां, ज्योति भरो ज्योतिर्धारी।।
लय - ब्याऊं बीनणी बिलखूं