साधु के पास संयम की संपदा होती है : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 15 नवंबर, 2021
युग प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सत्संगत का महत्त्व है। चतुर्मास चल रहा है, परिसंपन्नता में पाँच दिन भी शेष नहीं हैं। चतुर्मास भी सत्संगति का एक सुंदर अवसर होता है। जहाँ चारित्रात्माएँ या ज्ञानी-ध्यानी लोग प्रवास करते हैं, उनके संपर्क में आने वालों को अनेक आध्यात्मिक, धार्मिक, जीवनोपयोगिक जानकारियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
तत्त्वज्ञ ज्ञानी साधु संपर्क में आने वालों को बातचीत या प्रवचन के माध्यम से कुछ बताता है। यथार्थ बोध देने का प्रयास करता है, सुनने-कहने का, संपर्क में आने वालों का कल्याण पथ प्रशस्त हो सकता है। एक आदमी को भी दृढ़-धर्मी बना देना कितना बड़ा उपकार का कार्य हो सकता है। तत्त्व समझाकर धार्मिक या श्रावक बना देना एक महत्त्वपूर्ण काम हो सकता है। जैसे राजा परदेशी बना था। समझाने और समझने की कला का योग हो तो सफलता प्राप्त हो सकती है। कुमार श्रमण केशी और राजा परदेशी में अपनी-अपनी क्षमता थी। राजा परदेशी प्रतिबुद्ध हो गया कुमार श्रमण केशी के साथ संवाद करने से। दोनों तार्किक हो तो श्रोताओं को भी अच्छा लाभ मिल सकता है। समझपूर्वक सम्यक्त्व-श्रावकत्व ग्रहण करना, धर्म को स्वीकार करना उसकी मानो कोई अलग ही महिमा होती है। कुमार श्रमण केशी आस्तिक दर्शन के और राजा परदेशी नास्तिक दर्शन का जानकार था। दोनों के अपने-अपने सिद्धांत थे। कुमार श्रमण केशी का सिद्धांत था अन्य जीव अन्य शरीरवाद तो राजा परदेशी का सिद्धांत तद् जीव-तद् शरीरवाद था। दोनों में पूरा गहरा विरोध था। विरोध में भी अविरोध को खोजा जा सकता है। भेद में अभेद को देखा जा सकता है। जीव का भी अस्तित्व है, अजीव का भी अस्तित्व है। जीव और अजीव में फर्क तो है, पर कई रूपों में एकरूपता भी है। भेद नजर जल्दी आ जाता है। अभेद दिखाई नहीं देता है। भेद और अभेद को भी समझ लिया जाए। कुमार श्रमण केशी और राजा परदेश के प्रसंग को विस्तार से समझाया। संत के दरबार में राजा आ गया। फकीर के पास अमीर आ गया। साधु के पास जो संयम की संपदा है, वो गृहस्थ में नहीं, इसीलिए अमीरी-फकीरी के सामने झुक जाती है। राजा परदेशी सत्संगत में आ गया तो बोध भी प्राप्त हो गया। सम्यक्त्वी बन गया। सत्संगती बन गया। त्यागी साधु की उपासना करने वाले को अच्छा लाभ मिल सकता है। ‘सत्संगत’ से सुख मिलता है’ गीत का संगान किया। सम्यक् दीक्षा ग्रहण करवाई। मुख्य नियोजिका जी ने चार प्रकार की कथाओं का विवेचन करते हुए कहा कि कथाओं से तत्त्वों का निरूपण मिलता है। तत्त्व से हमें दृष्टि उपलब्ध होती है, जिससे हम अपनी दृष्टि शुद्ध कर सकते हैं। प्रवाचक विस्तारपूर्वक धर्म की व्याख्या करता है। सम्यक्त्व प्राप्त होता है और श्रोता के मन में वैराग्य की उत्पत्ति होती है। साध्वीवर्या जी ने कहा कि संसार में चार बातें दुर्लभ हैं। मनुष्य जन्म, श्रुत, श्रद्धा और संयम में पराक्रम। हमारे जीवन में श्रद्धा का विशेष महत्त्व है, यह विस्तार से समझाया। पूज्यप्रवर ने मंगलभावना समारोह में निर्मल सुतरिया, योगेश चंडालिया, सुमित नाहर, प्रदीप आंचलिया, प्रमिला गोखरू, राजेश सामसुखा, सुनील तलेसरा, विजय सुराणा, सुरेश चोरड़िया, महावीर लोढ़ा, वनीता भानावत, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने अपनी भावना अभिव्यक्त की, जो विभिन्न व्यवस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि पूज्यप्रवर संकल्प बल के प्रबल धनी हैं।