दीपै संथारो

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साध्वी प्रबलयशा

दीपै संथारो

दीपै संथारो, दीपै संथारो, दीपै संथारो।
थे तो जबरी हिम्मत धारी, कीर्तियशाजी हिम्मतधारी,
जावां म्हे सगळा बलिहारी, लागी शिवसुख स्यूं इकतारी।।
साहस स्यूँ पचख्यो संथारो, चमक्यो देखो भाग्य सितारो।
सार्थक बणग्यो जीवन थांरो।।
थारां मनोरथ तीनूं फलग्या, समता शिखरां पर थे चढ़ग्या।
थे तो भवसागर स्यूं तरग्या।।
थांरी सहिष्णुता नरमाई, मितभाषी मृदु व्यवहारी।
बनी अनासक्ति वरदाई।।
गुरु त्रय री कृपा पाई, गण गरिमा ने खूब बढ़ाई।
दीपै संथारो सुखदाई।।
निर्मोही निश्छल जीवन, रह्या अप्रमत्त थे क्षण-क्षण।
ऊंचा भावस्यूं लीनो अनशन।।
भागां स्यूं भैक्षव संघ पायौ, मिलग्यो महाश्रमण रो सायो।
दीज्यो साझ सबाने सवायो।।
मल्लिकाजी साझ दिरायो, सच्चा साथी रो फर्ज निभायो। सुखद सेवा रा मेवा पाओ।।
लय - धरती धोरां री