कोरे ज्ञान से नहीं आचरण के संयोग से सम्मान मिलता है : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 14 नवंबर, 2021
संबोधि प्रदाता, युग पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि सूयगड़ो आगम में बताया गया है कि एक आदमी बहुश्रुत है, शास्त्र पारगामी है। शास्त्रों का वेत्ता होना भी विशेष बात है। एक आदमी के पास विभिन्न विषयों का ज्ञान होता है। अपने धर्म के सिद्धांतों एवं अन्य धर्मों की बातों को भी वह जान लेता है। अनेक भाषाओं, अनेक विषयों का ज्ञान किसी-किसी के पास हो सकता है। बहुश्रुत एक विशिष्ट व्यक्ति होता है। बहुश्रुत से ज्ञान मिल सकता है। साधु और बहुश्रुत है, यह तो सोने में सुहागा की बात हो जाती है। ज्ञान और आचार दोहरी विशेषताओं वाला होता है। कई लोग तत्त्व को जानते तो हैं, पर आचरण करने में सक्षम नहीं हैं। कई आचरण करने में सक्षम हैं, पर ज्ञान शून्य है। जो तत्त्व को जानते भी हैं और आचरण में लाते भी हैं, ऐसे लोग दुनिया में विरल होते हैं। ज्ञान संपन्न होना भी एक विशेषता की बात हो जाती है। जो बहुश्रुत है, न्यायवेत्ता है या धर्म से जुड़ा धार्मिक आदमी है, ऐसे भी लोग अगर मायाकृत असत् आचरण में मूर्च्छित होते हैं, तो कर्मों के द्वारा तीव्र रूप में छिन्न होते हैं। पाप तो किसी का बाप नहीं। ज्ञान का अपना महत्त्व है, आचार का अपना महत्त्व है, यह एक प्रसंग से समझाया। कि कोरे ज्ञान से ही नहीं, आचरण से भी सम्मान मिलता है। आदमी के पास बुद्धि है, साथ में भाव भी शुद्ध होना चाहिए। विद्यालयों में ज्ञान भी मिलता है, पर कोरा ज्ञान आधा विकास है। साथ में आचरण है, तो पूरा ज्ञान है। ज्ञान के साथ संस्कार भी मिले। अच्छे आचरण जीवन में आएँ तो विद्यार्थी सुयोग्य बन सकते हैं। आचरणों की शुद्धि आवश्यक है। हमें अपने जीवन में ज्ञान का जितना विकास हो सके प्रयास करना चाहिए, आचरणों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। साधु आचरणों में शुद्ध है, भले उसमें ज्ञान न हो, समिति-गुप्ति का अच्छा पालन है, तो वह बारहवें गुणस्थान तक जा सकता है। चौदह पूर्वों के धारक भी आगे नरक-निगोद में जा सकते हैं।
गृहस्थ जीवन में भी, आचरणों में सदाचार होना चाहिए। आदमी कदाचार से बचे। भ्रष्टाचार, अत्याचार, दुराचार और अनाचार से बचें। सदाचार, शुद्धाचार इनको जीवन में स्थान देने का प्रयास करना चाहिए। शास्त्रकार ने कहा है कि बहुश्रुत भी आचरण के अभाव में छिन्न हो सकता है, पाप कर्म बंध कर सकता है। हमें गलत आचार से बचकर, सम्यक् आचार के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने भीलवाड़ावासियों को सामुहिक रूप में गुरु-धारणा ग्रहण करवाई। शासनश्री मुनि सुरेश कुमार जी की जीवन कथा ‘जो मैंने जीया’ पुस्तक जो जैविभा द्वारा प्रकाशित है, श्रीचरणों में लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। मुनिश्री एकांत साधना का प्रयोग भी कर रहे हैं। अच्छा लंबा संयम पर्याय करीब 64 वर्ष का है। आत्म-बल से प्रेरणा मिल सकती है। मुनिश्री के प्रति मंगलकामना है कि आध्यात्मिक साधना अच्छी चलती रहे। मुख्य नियोजिका जी ने फरमाया कि साधक पढ़ा हुआ ज्ञान बुद्धि में योजित कर लेता है। अनुप्रेक्षा से ज्ञान की गहराई में जा सकते हैं। अनुप्रेक्षा को विस्तार से समझाया। हम चाहे जैसी भावना से भावित हो सकते हैं। मुनि संबोध कुमार जी ने मुनि सुरेश कुमार जी की जीवन कथा ‘जो मैंने जीया’ का संपादन किया है। उन्होंने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। नाहर सिस्टर एवं हिरेन चोरड़िया ने गीत की प्रस्तुति दी।