आरंभ और परिग्रह छोड़ने से प्रशस्त होता है आत्मकल्याण का मार्ग : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 9 नवंबर, 2021
संबोधि प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने ज्ञान पंचमी-लाभ पांचम के अवसर पर अमृत ज्ञान रूपी वर्षा करते हुए फरमाया कि सूयगड़ो आगम में शास्त्रकार ने बताया है कि कई बार आदमी अपने माता-पिता से पहले ही मर जाता है। यह संसार की एक स्थिति है कि जो बाद में जन्में थे, वो पहले चले जाते हैं। दूसरी बात बताई है कि आगे सुमति भी सुलभ नहीं है। आदमी मर तो गया पर कहाँ पैदा होगा? कितने जीव दुर्गति में चले जाते हैं। चार ज्ञान चौदह पूर्व के धारक भी नरक निगोद में चले जाते हैं। यह स्थिति जीवन की बन सकती है, यह भय देखकर आदमी हिंसा से विरत हो। आरंभ और परिग्रह से विरत हो जाए। आरंभ और परिग्रह ये दो तत्त्व नरक में ले जाने वाले हैं। नरक गति के बंध के कारण हैंमहाहिंसा और महापरिग्रह। साधु अपने महाव्रतों के लिए जागरूक रहे। गृहस्थ हैं वे ध्यान दें कि मैं आरंभ से कितना विरत हो सकता हूँ। परिग्रह को कितना कम कर सकता हूँ। जीवन में जितना त्याग बढ़ता है, वो हमारी एक आध्यात्मिक संपदा हो जाती है। श्रावक के बारह व्रत हैं, एक त्याग की साधना है। उसके आगे की साधना मैंने बताई हैसुमंगल-साधना। संयम की और मजबूत साधना सुमंगल साधना है। सुमंगल साधना के नियम बताकर ग्रहण करने की प्रेरणा दी। इससे जीवन में त्याग और अधिक त्याग हो जाता है। त्याग जितना बढ़ेगा वो आगे के लिए एक अच्छी स्थिति बनाने में निमित्त बन सकेगा। आत्मा की स्थिति अच्छी हो, भव भ्रमण कम हो, आदमी ये भावना रखे। छोटी-छोटी बात में आदमी ध्यान दे कि हिंसा से बचाव हो। पंचेन्द्रिय प्राणी की हत्या तो गृहस्थ में होनी भी नहीं चाहिए। प्राणी की हत्या न हो। अपनी सुरक्षा के लिए उसे दूर छोड़ा जा सकता है। जमीकंद भक्षण से जितना हो सके बचें, त्याग रखें। यह एक प्रसंग से समझाया कि विवेक से हिंसा से बचा जा सकता है। मन में अहिंसा का भाव रहे। परिग्रह में जितना अल्पीकरण हो सके, करें। परिग्रह के अर्जन में अहिंसा, नैतिकता, प्रामाणिकता रह सके, ऐसा प्रयास हो। धर्म के मार्ग पर बढ़ें, हिंसा से बचें यह भी एक प्रसंग से समझाया कि कूट तोल-माप से तिर्यन्च गति का बंध हो सकता है। आरंभ-परिग्रह छोडो, आत्म-कल्याण में लगें। आत्मा का उत्थान हो सकेगा। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि हर व्यक्ति ज्ञान बढ़ाना चाहता है। ज्ञान बढ़ाने का साधन हैप्रश्न पूछना। साध्वीवर्या जी ने फरमाया कि हम अनावश्यक बोलने से बचें। ऊँची भाषा बोलें। भाषा मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।