पैसे के लिए ईमानदारी की संपत्ति को नहीं लुटाना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
पेटलावद, 13 जून, 2021
त्रि-दिवसीय पेटलावद प्रवास का आज तीसरा दिन। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी को थोड़ा लाभ मिले और ज्यादा नुकसान हो, ऐसा कार्य नहीं करे। यह तो एक नासमझी और मूढ़ता की बात है कि नुकसान ज्यादा और लाभ थोड़ा सा।
अल्प के लिए बहुत को खो देना, इस प्रकार का काम करने वाले तो विचार-मूढ़ मुझे लग रहे हैं, ऐसा एक श्लोक में कहा गया है। जैसे साधु के पास पाँच महाव्रत रूपी विशाल संपदा है। पहला महाव्रत हैसर्व प्राणातिपात विरमण। सर्व हिंसा से दूर-विरक्त रहना। दूसरा सर्व मृषावाद विरमण। तीसरा महाव्रत हैसर्व अदतादान विरमण। चौथा महाव्रत हैसर्व मैथुन विरमण और पाँचवा महाव्रत हैसर्व परिग्रह विरमण। ये पाँचों महाव्रतों का तीन करण, तीन योग से त्याग होता है।
प्रथम महाव्रत हैसर्व प्राणातिपात विरमण। उसके लिए साधु के अनेक छोटे-छोटे नियम बने हुए हैं। रात्रि भोजन नहीं करना न पानी पीना। ये पाँच महाव्रत हैंये अमूल्य हैं। पाँच कीमती हीरे हैं। साधु के पास इतनी बड़ी संपदा है कि स्थूल भाषा में मोक्ष को खरीदा जा सकता है।
इस महान संपदा को कोई साधु थोड़े में दे दे तो वह अल्प के लिए बहुत को खोने जैसी बात हो जाती है। ये शील व्रत और त्याग की संपदा साधु के पास है, जो बहुत फल देने वाली है। साधु मृत्यु के बाद या तो मोक्ष में जाता है या स्वर्ग-देवगति में जाता है। स्वर्ग मिलना तो एक भौतिक लाभ है। मोक्ष मिलना परम लाभ है। आत्मा की उज्ज्वलता का होना बड़ा लाभ होता है।
कोई निदान कर ले, मेरी इस साधु जीवन की साधना का लाभ मिले तो मैं आगे के किसी जन्म में चक्रवर्तीबड़ा राजा बन जाऊँ। ऐसी इच्छा-संकल्प कर लें और उसकी आलोचना न करे, इसका मतलब है कि साधुपन की संपदा को थोड़े के लिए लुटा देना यह एक नासमझी और मूढ़ता की बात होती है।
कोई साधु बन पाँच महाव्रत स्वीकार कर लिए पर बाद में मन कमजोर हो गया, साधुपन छोड़ घर चला गया तो भी उसने उस साधुपन की संपदा को थोड़े सांसारिक भोगों के लिए बड़ी संपदा को खो दिया। आप लोग गृहस्थ हैं, व्यापार-धंधा करते हैं। कुछ पैसे के आकर्षण से कार्य में बेईमानी कर लेते हैं। हिसाब-किताब में गड़बड़ी कर देते हैं, उस पैसे की संपदा के लिए ईमानदारी की महत्त्वपूर्ण संपदा को खो देते हैं।
गृहस्थों के लिए पैसा एक संपत्ति है, तो ईमानदारी भी एक संपत्ति है। पैसे के लिए ईमानदारी की संपत्ति को नहीं लुटाना चाहिए। थोड़े के लिए बहुत को न खोएँ। यह एक दृष्टांत से समझाया कि एक कांकिणी के लिए हजार कारसापण खोने की बात हो जाती है। मूल बात आध्यात्म की है कि थोड़े से भोगों के लिए अपना लिया हुआ त्याग-नियम-संकल्प है, उसको खोना नहीं चाहिए।
आचार्य भिक्षु लोगों को तत्त्व बोध ज्ञान देते थे। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से लोगों को समझाया। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने भी अहिंसा यात्रा की थी। अध्यात्म की साधना भी एक संपदा है। तत्त्व बोध और ज्ञान भी जीवन की एक संपदा होती है। ऐसी संपदाओं को थोड़े से लाभ, भौतिक आकर्षण के कारण खोना नहीं चाहिए। यह भी एक दृष्टांत से समझाया कि वो नहीं दूँगा जो देना चाहता था।
त्याग लेकर निभाना भी एक संपदा है। आदमी बाह्य चीजों में उलझ जाता है, तो अध्यात्म की बड़ी संपदा से वंचित रह सकता है। सुंदर शिक्षा है, एक सूक्त है कि थोड़े के लिए बहुत को मत खोओ।
पूज्यप्रवर आज प्रेमसागर गार्डन में पधारे हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत एवं अभिवंदना में प्रेमसागर गार्डन से मनोज गादिया, राजेश बोहरा, महिला मंडल, ऐनी पटवा, अमृत भंडारी, कमल कोठारी, पंकज पटवा, अंजली मौनत, प्रमोद कोठारी, नरेंद्र कासवां, प्रतीक्षा मौनत, पुलकित रजत पालरेचा, किशोर मंडल, महक भंडारी,सोनू पटवा, रोचक मौनत ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।