अवबोध
ु मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’ ु
(3) चारित्र मार्ग
प्रश्न-6 : पाँच चारित्र के कितने उपभेद हो सकते हैं?
उत्तर : सामायिक चारित्र के दो भेद हैं
(1) अल्पकालिक यह प्रथम व अंतिम तीर्थंकरों के काल में होता है। इसकी स्थिति जघन्य 7 दिन, मध्यम 4 माह व उत्कृष्ट 6 माह होती है।
(2) यावज्जीवन यह मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के काल में व महाविदेह क्षेत्र में होता है। इसकी स्थिति यावज्जीवन की होती है।
छेदोपस्थापनीय के दो भेद हैं
(1) अतिचार सहित दोषयुक्त
(2) अतिचार रहित दोषमुक्ततेईसवें तीर्थंकर के शासन के मुनि जब चौबीसवें तीर्थंकर के धर्मशासन
में आते हैं। उनको व नवदीक्षित को यह चारित्र आता है।
परिहार विशुद्धि चारित्र के दो भेद हैं
(1) नियट्टमाण ‘परिहार विशुद्धि’ तप में संलग्न होना।
(2) नियट्टकाय तप की पूर्णता।
सूक्ष्म संपराय चारित्र के दो भेद हैं
(1) संक्लेसमाण श्रेणी पतन के समय
(2) विशुद्धमाण श्रेणी आरोहण के समय
यथाख्यात चारित्र के दो भेद हैं
(1) छद्मस्थ ग्यारहवें व बारहवें गुणस्थान में
(2) केवली तेरहवें व चौदहवें गुणस्थान में
(क्रमश:)