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स्थिरयोगी के पथ को तो स्वयं आलोकित करता है सूरज
अमरनगर। 'शासनश्री' साध्वी सत्यवतीजी के सान्निध्य में प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञजी का 106वां जन्मदिन मनाया गया। अध्यात्म योगी की वर्धापना में साध्वी रोशनीप्रभाजी ने गुरु-शिष्य के अनहद वात्सल्य व जीवन प्रसंगों को साझा किया। वहीं साध्वी शशिप्रज्ञाजी ने कहा कि कई शताब्दियों के बाद ऐसे महापुरुष का जन्म होता है, जिनकी सरलता स्वयं उनका अनुसरण करती है। कोई उन्हें आचार्य सिद्धसेन कहता, कोई विवेकानंद; लेकिन उनके विद्या-गुरु कहते थे—उन्हें 'महाप्रज्ञ' ही रहने दो। साध्वी पुण्यदर्शनाजी ने अदृश्य जगत के महायोगी से जुड़े कुछ प्रश्न-उत्तर के माध्यम से ज्ञान-सम्पदा को समृद्ध करने का प्रयास किया। 'शासनश्री' साध्वी सत्यवतीजी ने अभिवंदना के स्वर में कहा—आचार्य महाप्रज्ञजी संत तो थे ही, साथ ही एक कुशल दार्शनिक एवं विद्वान पंडित के रूप में भी प्रख्यात हुए। ऐसे स्थिरयोगी के पथ को तो सूरज स्वयं आलोकित करता है और चन्द्रमा शीतलता की छाया प्रदान करता है। अर्चना के स्वर में तेरापंथ महिला मंडल ने महापुरुष के जीवन की एक झलक को मंच पर चित्रित किया और गीतिका के माध्यम से अपनी आस्था को उजागर किया। सभा अध्यक्ष सुरेश जीरावला, नवनिर्वाचित तेयुप अध्यक्ष मनसुख संचेती, प्रो. महावीर राज गेलड़ा एवं जगदीश धारीवाल ने भावपूर्ण विचार व्यक्त किए।कार्यक्रम का प्रारंभ संगीता जीरावला एवं चन्द्रा जीरावला के मंगलाचरण से हुआ तथा कौशलपूर्ण संचालन सभा मंत्री महावीर चोपड़ा ने किया।