
स्वाध्याय
समर्थता के साथ समर्पण का नाम है महाप्रज्ञ
जयपुर। आचार्य महाप्रज्ञ के 106वें जन्मदिवस के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुनि तत्त्व रुचि जी 'तरुण' ने कहा—विद्वता के साथ विनम्रता और समर्थता के साथ समर्पण का नाम है आचार्य श्री महाप्रज्ञ। मुनिश्री ने आगे कहा—जीवन में विनम्रता वरदान है और समर्पण स्वर्ग का द्वार खोलता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की विकास यात्रा में इन दोनों गुणों की अहम भूमिका रही है। उनके आंतरिक व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए मुनिश्री ने कहा कि उनके व्यक्तित्व में एक चुंबकीय आकर्षण था—संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। इस संदर्भ में मुनिश्री ने कई उदाहरण भी प्रस्तुत किए। मुनि संभवकुमार जी ने कहा—नेतृत्व की शैली प्रत्येक व्यक्ति की अपनी होती है। कोई अनुशासक कठोर प्रकृति का होता है, तो कोई कोमल स्वभाव का। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी में दोनों का सुंदर संगम था। वे अतींद्रिय ज्ञान और जागृत प्रज्ञा के धनी थे। कार्यक्रम की शुरुआत तेरापंथ महिला मंडल की बहनों द्वारा 'महाप्रज्ञ जन्मोत्सव आज मनाएं' गीत के मंगलाचरण से हुई। इस अवसर पर तेरापंथ सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजेंद्र बांठिया, तेरापंथ युवक परिषद से अनिल दुगड़, बरकत नगर श्रावक समाज से सम्पत बोथरा, संदीप भंडारी, प्रतीक लोढ़ा, सरोज बैद, निशा भूतोड़िया, कोमल लोढ़ा, गुलाब जी बोथरा, संगीता, सुनीता लोढ़ा, सुरभि, मधु बैद, सुमन कोठारी आदि ने अपने विचार, वक्तव्य और गीत-कविताओं के माध्यम से भावांजलि अर्पित की।