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अनुपम था आचार्य महाप्रज्ञ का समर्पण
महरौली, नई दिल्ली। आचार्य महाप्रज्ञ का 106वां जन्मदिवस अत्यंत आह्लादकारी वातावरण में मनाया गया। इस अवसर पर सैकड़ों घरों में 'ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरुवे नमः' का जाप-अनुष्ठान सम्पन्न हुआ। आज ही के दिन अध्यात्म साधना केन्द्र एवं तेरापंथ परिसर के समस्त स्टाफ एकत्रित हुए और प्रेक्षावाहिनी कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। राज गुनेचा एवं विमल गुनेचा के निर्देशन में लगभग 31 भाई-बहनों ने इसमें सहभागिता की। इस अवसर पर साध्वी कुन्दनरेखा जी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ का समर्पण अनुपम था, उनका संपूर्ण जीवन उसकी मिसाल रहा। 'रहो बाहर, जीओ भीतर' इस मंत्र ने उन्हें शाश्वत संदेश प्रदान किया, जिसके कारण वे महायोगीराज कहलाए। उन्होंने सेवा, स्वास्थ्य, सहनशीलता, संयम और शांति जैसे जीवन मूल्यों को अपनाने का संदेश दिया और जनचेतना को जाग्रत किया। उन्होंने न केवल संघ को आलोकित किया, अपितु मानव-मन को भी संवारने का अथक प्रयास किया। प्रेक्षावाहिनी का शुभारंभ उनके जन्मदिवस पर सच्ची श्रद्धांजलि है।
साध्वी सौभाग्ययशा जी ने कहा कि करुणा के सागर आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म जनचेतना के जागरण हेतु हुआ। उन्होंने आचार्य कालूगणी से दीक्षा, गुरुदेव तुलसी से शिक्षा प्राप्त की और अपने पुरुषार्थ से आत्मचेतना को जाग्रत किया। साध्वी कल्याणयशा जी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी जीवनशैली से विश्व को प्रतिबोधित किया और शांति का संदेश दिया। इस अवसर पर गायक जितेन्द्र कुमार ने आचार्य महाप्रज्ञ की दो कविताओं को मधुर स्वर देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। राजेश भंडारी ने भी अपनी सुमधुर आवाज में प्रस्तुति दी। संदीप डूंगरवाल ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचार हैं, जिनकी मौलिक सोच, अद्वितीय साहित्य सृजन और सौम्य स्वभाव ने सभी को प्रभावित किया। प्रेक्षाध्यान जैसे महान अवदान से उन्होंने तनावमुक्त और आनंदमयी जीवन शैली का महामंत्र दिया। कार्यक्रम की शुरुआत तेरापंथ महिला मंडल साउथ दिल्ली द्वारा प्रस्तुत प्रेक्षागीत से हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रेक्षा प्रशिक्षिक विमल गुनेचा ने किया। इस अवसर पर ध्यान के प्रयोग भी करवाए गए।