एकाह्निक तुलसी-शतकम्
(क्रमश:)
(47) त्वदीये नहि जानामि, वचने का चमत्कृति:।
स्वास्थ्यलाभमकरोद् साध्वी, गन्तव्यस्थान आगता॥
गुरुवर! मैं नहीं जानता आपके वचनों में क्या चमत्कार है। जब साध्वी राजकुमारी जी (नोहर) का टायफायड-ज्वर के कारण अपने गंतव्य चातुर्मासिक स्थान तक पहुँचना असंभव लग रहा था। आपके वचनों का ऐसा विलक्षण प्रभाव पड़ा कि वे स्वस्थ
भी हो गई और समय रहते अपने गंतव्य तक भी पहुँच गई। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-1, पृष्ठ 85)
(48) त्वदीये नहि जानामि, वाग्दण्डे का चमत्कृति:।
राजेन्द्रस्वामिनो हिक्का, दीर्घकालादरुद्ध हि॥
मैं नहीं जानता आपके उपलम्भ में क्या चमत्कार है। आपने नवदीक्षित मुनि राजेंद्र कुमार जी स्वामी की जोरदार उठावणी की, फिर कुछ समय पश्चात उन्हें अपने पास बुलाया एवं वात्सल्य से सिर सहलाते हुए रहस्य का उद्घाटन किया कि यदि वे इतने कठोर शब्दों से उपलम्भ नहीं देते तो उनकी हिचकी बंद नहीं होती। तब बालमुनि को समझ आया कि मेरे लंबे समय से चल रही हिचकी का गुरुवर्य ने उपाय कर दिया। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-1, पृष्ठ 89)
(49) त्वदीये नहि जानामि, कवले का चमत्कृति:।
भवद्कवलमात्रेण, भूतं दीर्घतपो गणे॥
प्रभो! मैं नहीं जानता आपके ग्रास में क्या चमत्कार है। साध्वी नोजांजी (सरदारशहर) ने आपके करकमलों से ग्रास प्राप्त कर 25 दिनों की शक्ति प्राप्त कर ली एवं सानंद तप संपन्न किया। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-1, पृष्ठ 104)
(50) नो जानामि त्वदीयेषु, वाक्येषु का चमत्कृति:।
त्वया मात्रत्रिवाक्येन, वमनशमनं कृतम्॥
गुरुवर्य! मैं नहीं जानता आपके वाक्यों में क्या चमत्कार है। आपके मुखारविंद से निकले शब्द‘कोई खास बात नहीं, चिंता मत करना, सब ठीक हो जाएगा।’ यह तीन वाक्यों ने साध्वी प्रियंवदा जी की दुश्चिंतता समाप्त कर दी एवं हो रहे वमन का भी उपचार कर दिया। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-1, पृष्ठ 117)
(51) त्वदीये नहि जानामि, दर्शने का चमत्कृति:।
परोक्षे दर्शने प्राप्ते, भूतस्स्वस्थोऽरुणापति:॥
गुरुदेव! मैं नहीं जानता आपके दर्शन में क्या चमत्कार है। जब विश्वदूत के संचालक एडवोकेट ए0पी0 शुक्ला को अचानक हार्ट-अटैक आ गया और डॉक्टर भी कुछ कहने के हालत में नहीं थे, तब उनकी पत्नी श्रीमती अरुणा शुक्ला को आपकी एक दिव्य मूर्ति दिखाई दी। उन्होंने संकल्प किया कि उनके पति स्वस्थ होते ही, वे आपके दर्शन करने आएँगे और उसी दिन से क्रमश: स्वस्थ हो गए। इस प्रकार आपका अप्रत्यक्ष दर्शन भी कल्याणकारी है। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-3, पृष्ठ 26)
(52) त्वदीये नहि जानामि, चेङ्गिते का चमत्कृति:।
भवदिङ्गितमात्रेण, ह्याभिन्नौ क्षुद्रश्रेष्ठिणौ॥
भगवन् मैं नहीं जानता कि आपके ईशारे में क्या चमत्कार है। कंटालिया प्रवास में पंडाल खचाखच भरा था, परंतु आपको वर्ण-भेद के आधार पर लोगों का बैठना नहीं भाया। आपने श्रोताओं को संबोधित किया और एक ईशारे में श्रेष्ठियों और किसानों की दूरी मिट गई और सब एक हो गए। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-3, पृष्ठ 61)
(53) यदा यदा कुरूढीणां, वृद्धिर्भूता तदा तदा।
तुलसी तद्विनिशाय, सदैव समुपस्थित:॥
जब-जब कुरूढ़ियों की वृद्धि होती तब-तब उनका विनाश करने गुरुदेव श्री तुलसी सदा समुपस्थित रहते।
(शेष अगले अंक में)