भौतिक इच्छाओं का परिसीमन करें, आध्यात्मिक विकास का नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शाहीबाग, अहमदाबाद। 3 जुलाई, 2025

भौतिक इच्छाओं का परिसीमन करें, आध्यात्मिक विकास का नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

सप्तदिवसीय शाहीबाग प्रवास के अंतिम दिन जिनशासन के भास्कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि व्यक्ति के भीतर इच्छा होती है। मन है तो इच्छा आसानी से उभर सकती है। इच्छा या विवेक होता है तब व्यक्ति प्रवृत्तिमान बन सकता है। इच्छा में परिष्कार हो जाए। असद् इच्छा न हो, सद् इच्छा, अच्छी इच्छा हो। सेवा की भावना सद्इच्छा हो जाती है। संतोष करना भी अच्छा है, परंतु सब जगह संतोष करना अच्छा नहीं है। साधु को तो आहार मिले या न मिले, फिर भी दुःखी नहीं बनना चाहिए। मिला तो शरीर को पोषण, न मिला तो तप को पोषण। दोनों स्थिति में संतोष और समता में रहना चाहिए। गृहस्थ को धन प्राप्ति में संतोष करना चाहिए, परंतु ज्ञान प्राप्त करने में संतोष नहीं करना चाहिए।
सामने चातुर्मास है। साधु-साध्वियां अधिक से अधिक स्वाध्याय में संलग्न रहें। 'शासनश्री' मुनिश्री धर्मरुचिजी साहित्य संपादन में अच्छा समय दे रहे हैं। उनके कार्य की सक्रियता बनी रहे। गुरुदेव तुलसी के जीवनवृत्त एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जीवनवृत्त लेखन का कार्य चल रहा है। अभी स्थिरता का समय है, पढ़ने, ज्ञान प्राप्त करने और अध्ययन का प्रयास करें। प्रेक्षाध्यान के प्रयोग चलते रहें। जप करने में भी संतोष नहीं करें। गृहस्थ को साधु के दान देने में भी संतोष नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को भौतिक इच्छाओं का परिसीमन करना चाहिए तथा आध्यात्मिक इच्छाओं को यथासंभव पुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। इच्छा तो आकाश के समान अनंत होती है। संतोष परम सुख है। चातुर्मास में पुरुषों और बहनों की ज्ञान की कक्षाएं चलें। ज्ञानशालाओं का क्रम भी अच्छा चले। निरंतर विकास करते रहें।जीवन में भी कहीं कमियां हैं तो उनका परिष्कार करने का प्रयास करें। परिष्कार करने से अच्छाई आ सकती है।
तपस्या भी हो। आचार्य श्री भिक्षु का 300वां जन्म दिवस आ रहा है। 8-9-10 जुलाई को तेले की तपस्या करने का प्रयास करें। फिर अनुकूलता रहे तो और आगे बढ़ें। मुनि राजकुमारजी, मुनि अजीतकुमारजी एवं मुनि मदनकुमारजी भाइयों में तपस्या की प्रेरणा देते रहें। मंगल प्रवचन के उपरान्त आयोजित 'शासनश्री' मुनिश्री रविन्द्रकुमारजी की स्मृति सभा में पूज्यवर ने फरमाया कि मुनिश्री रविन्द्रकुमारजी का मेवाड़ के पदराड़ा में देहावसान हो गया। पूज्यवर ने मुनिश्री का सक्षिप्त परिचय दिया और उनकी आत्मा के ऊर्ध्वारोहण के लिए चतुर्विध घर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान कराया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, मुनि मदनकुमारजी, मुनि ध्यानमूर्तिजी ने भी मुनिश्री रविन्द्रकुमारजी के प्रति अपनी आध्यात्मिक मंगल भावना अर्पित की। मुनिश्री रविन्द्रकुमारजी के भाई एस. के. जैन, कमलेश छाजेड़ ने भी अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।