अहंकार से पूर्णतः मुक्त थे आचार्य महाप्रज्ञ

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डीडवाना।

अहंकार से पूर्णतः मुक्त थे आचार्य महाप्रज्ञ

डीडवाना। तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की जयंती, प्रज्ञा दिवस के रूप में साध्वी गुप्तिप्रभा जी के सान्निध्य में मनाई गई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए साध्वी गुप्तिप्रभा जी ने आचार्य महाप्रज्ञ जी की विलक्षणताओं का उल्लेख करते हुए कहा, 'समुद्र की लहरों को गिनना मुमकिन नहीं, धरती के कणों को गिनना संभव नहीं, समुद्र को तुला से तोला नहीं जा सकता, आकाश को भुजाओं से मापा नहीं जा सकता — उसी प्रकार आचार्य महाप्रज्ञ जी की विशेषताओं को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। एक छोटी-सी पिताजी की दुकान से प्रारंभ कर अध्यात्म की एक विशाल दुकान खोली और समस्त जगत को अपना बना लिया।'
उन्होंने आगे कहा कि आचार्य पद तक पहुंचने में अनेक विलक्षण गुणों ने भूमिका निभाई। 'बचपन में समर्पण होना सामान्य है, लेकिन बड़े होकर भी समर्पण भाव बना रहना असाधारण है। जैसे मेघ के साथ आंधी आती है वैसे ही ज्ञान के साथ अहंकार आ सकता है, लेकिन आचार्य महाप्रज्ञ जी इससे पूर्णतः मुक्त रहे। वे अत्यधिक योग्यता, अक्षुण्ण चरित्र और संघीय चिंतन से समृद्ध थे। यही कारण रहा कि आचार्य श्री तुलसी ने उन्हें आचार्य पद से अलंकृत किया।'
साध्वी मौलिकयशा जी ने कार्यक्रम का मंगलाचरण किया एवं 'महाप्रज्ञ' नाम का भावपूर्ण विश्लेषण करते हुए सुंदर अभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर नगेंद्र मणोत, नरेंद्र मणोत, सभा अध्यक्ष सुरेश चोपड़ा, प्रदीप मणोत, श्रेयस संचेती, प्रिंस मणोत, विनीता एवं दिव्या चोपड़ा ने विविध रूपों में अपनी भावांजलि अर्पित की। कुशल संचालन साध्वी भावितयशा जी द्वारा किया गया।