समर्पण, विनय और शिक्षा गुरु के प्रति  था अनन्य भाव

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नाथद्वारा।

समर्पण, विनय और शिक्षा गुरु के प्रति था अनन्य भाव

नाथद्वारा। साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का 106वां जन्मदिवस मनाया गया। इस अवसर पर साध्वीश्री जी ने कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनमें समर्पण, विनय तथा गुरु और शिक्षा गुरु के प्रति अनन्य भाव था। बाल मुनि की अवस्था में ही उन्होंने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि मैं ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा जो मेरे शिष्य गुरु को पसंद न हो। जन्म से ही माता ने उनमें आध्यात्मिक संस्कार भर दिए थे। टमकोर में मुनि छबीलजी स्वामी के चातुर्मास में उन्हें प्रेरणा मिली और वे संघ में दीक्षित हो गए।
प्रारंभ में वे अज्ञ थे, अज्ञ से विज्ञ बने, फिर विशेषज्ञ बने और अंततः महाप्रज्ञ बन गए। वे इतने सरल थे कि मुनि मगनलाल स्वामी ने कहा कि पांचवें आरे में कोई सर्वज्ञ नहीं बन सकता, यदि बन सकता तो सबसे पहले आचार्य महाप्रज्ञ ही बनते। उनका प्रवचन इतना सरस और सरल भाषा में होता था कि प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करता कि यह तो मेरे लिए ही फरमा रहे हैं। साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने शासन माता द्वारा रचित कविता का पाठ किया। साध्वीवृंद ने सामूहिक रूप से एक सुमधुर गीत का संगान किया। महासभा के सदस्य कांतिलाल धाकड़, महिला मंडल की अध्यक्षा मंजू पोरवाल एवं फतेहचंद बोहरा ने अपने विचार व्यक्त किए। मंगलाचरण महिला मंडल की बहनों द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन साध्वी गीतार्थप्रभा जी ने किया।