चार दीक्षार्थी भाई-बहनों का मंगल भावना समारोह हुआ आयोजित

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उधना।

चार दीक्षार्थी भाई-बहनों का मंगल भावना समारोह हुआ आयोजित

महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासनश्री' साध्वी मधुबाला जी के सान्निध्य में चार दीक्षार्थी भाई-बहनों — मुमुक्षु अंजलि सिंघवी (कोयंबटूर), मुमुक्षु कल्प मेहता (वाव-सूरत), मुमुक्षु विशाल परीख (वाव-सूरत) एवं मुमुक्षु मनोज संकलेचा (टापरा-सूरत) — का भव्य मंगल भावना समारोह आयोजित हुआ। इस अवसर पर उपस्थित विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए 'शासनश्री' साध्वी मधुबाला जी ने कहा कि मनुष्य जीवन अत्यंत दुर्लभ है। यही एकमात्र जीवन है जिसमें व्यक्ति अपने पूर्व संचित कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष पद को प्राप्त कर सकता है। यदि मोक्ष प्राप्ति का कोई स्वर्णिम सोपान है, तो वह दीक्षा ही है। दीक्षा का अंगीकार करने वाला संयम के मार्ग पर अग्रसर होता है। संयम चिंतामणि रत्न के समान है, जो जन्म-मरण की परंपरा को सदा के लिए समाप्त कर सकता है।
उन्होंने कहा कि आज हमारे समक्ष चार-चार मुमुक्षु उपस्थित हैं, जो संसार सागर को पार करने के लिए उत्सुक हैं। दीक्षा की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा कि दीक्षा वह प्रक्रिया है जो राग से विराग की ओर, असंयम से संयम की ओर, और बंधन से मुक्ति की ओर ले जाती है। उन्होंने सभी दीक्षार्थियों के दृढ़ संकल्प की सराहना करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य हेतु कामना की। साध्वी विज्ञानश्रीजी, साध्वी सौभाग्यश्रीजी, साध्वी मंजुलयशाजी एवं साध्वी मेधावीप्रभाजी ने भी दीक्षार्थियों के संयममय जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं। मुमुक्षु अंजलि सिंघवी, जो साध्वी मंजुलयशा जी की संसारपक्षीय छोटी बहन हैं, ने कहा कि उन्हें सांसारिक जीवन प्रिय था और नए-नए वस्त्र पहनने का अत्यधिक शौक था। उन्हें कभी कल्पना भी नहीं थी कि उनके भीतर वैराग्य भाव जागृत होगा। लेकिन जब पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी कोयंबटूर में उनके घर पधारे, तो उनके आशीर्वाद और ‘शासन माता’ साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी, साध्वी मधुबाला जी तथा अपनी बड़ी बहन साध्वी मंजुलयशा जी की प्रेरणा से उनके अंतर्मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ। उन्होंने सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
मुमुक्षु कल्प मेहता ने कहा कि उनका जन्म वर्ष 2003 में उस समय हुआ जब पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का चातुर्मास सूरत में था। उसी समय युवाचार्य महाश्रमण जी ने अस्पताल पधारकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया था। उन्होंने कहा कि उन्हीं के आशीर्वाद से वैराग्य भाव का अंकुर उनके भीतर फूटा और साध्वी मधुबाला जी ने उनके वैराग्य को पुष्ट किया। मुमुक्षु विशाल परीख ने कहा कि सूरत उनकी कर्मभूमि है। वर्ष 2015 में उन्होंने ज्ञानशाला प्रकोष्ठ से जुड़ाव प्रारंभ किया। 'शासनश्री' साध्वी मधुबाला जी और साध्वी सौभाग्यश्रीजी की प्रेरणा से वे उपासक बने और आज उनके आशीर्वाद से उन्हें दीक्षा मार्ग पर अग्रसर होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मुमुक्षु मनोज संकलेचा, जो मुनि दिनेश कुमार जी के संसारपक्षीय भतीजे हैं, ने कहा कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वे दीक्षा ले पाएंगे। जब कोई दीक्षा की बात करता था, तो वे उससे दूर भागते थे। लेकिन मुनि दिनेश कुमार जी और साध्वी मधुबाला जी की प्रेरणा ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
संयोजकीय वक्तव्य में साध्वी मंजुलयशा जी ने श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि आप स्वयं दीक्षा लें या न लें, लेकिन यदि भविष्य में आपकी संतान दीक्षा लेने के लिए तैयार हो, तो उसमें बाधक नहीं, बल्कि साधक बनें। तेरापंथ सभा उधना के अध्यक्ष निर्मल चपलोत, पूर्व अध्यक्ष बसंतीलाल नाहर, सूरत सभा मंत्री महेन्द्र गांधी मेहता आदि ने दीक्षार्थियों के प्रति मंगल भावना व्यक्त की। समाज के अग्रणियों द्वारा सभी मुमुक्षुओं को अभिनंदन पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया। तेरापंथ महिला मंडल, सभा, युवक परिषद, अणुव्रत समिति एवं ज्ञानशाला द्वारा मधुर गीतों की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथ सभा उधना के मंत्री मुकेश बाबेल ने किया। कार्यक्रम में स्थानकवासी जैन समाज के अग्रणियों की उपस्थिति भी रही।