
रचनाएं
भिक्षु-भिक्षु गाएं हम
भिक्षु-भिक्षु जन-जन मुख पर, गूंज रहा है नारा।
श्री भिक्षु त्रिजन्मशताब्दी, लाया नाया उजारा।
भिक्षु-भिक्षु गाएं हम।
भिक्षु को बुलाएं हम।।
1. मर्यादाओं की नीवों पर मंजुल महल बनाया,
त्यागी बालिदानी संतों ने, तप से इसे सजाया।
मर्यादा ही ढाल हमारी, मर्यादा सबल सहारा।।
2. गण निष्ठा गुरू निष्ठा, दिन-दिन होती जाये गहरी,
आज्ञा निष्ठा अनुपालन में, बनें सजग हम प्रहरी।
श्रद्धा भक्ति से भावित हो, तन मन प्राण हमारा।।
3. सेवा की आराधना से संघ चमन खिलता है,
आगम वाणी मुखरित होती, तीर्थकर पद मिलता है।
सेवा परम धर्म कहलाये, लाखों को पार उतारा।।
4. श्वास समर्पण प्राण समर्पण, तेरापंथ निशानी,
गुरु दृष्टि सुख सृष्टि बनती, हम गण के सेनानी।
गण अपना हम गण के हैं, गुरु इंगित लगता प्यारा।।
5. एक सुगुरू के अनुशासन में, संघ प्रगति करता है,
निज पर शासन फिर अनुशासन, यही मंत्र फलता है।
भिक्षु चेतना वर्ष मनाये, महाश्रमण ध्रुवतारा।।
लय - माईन माईन