तेरापंथ का संविधान शुद्ध साधुत्व और चरित्र आराधना का आधार है

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गंगाशहर।

तेरापंथ का संविधान शुद्ध साधुत्व और चरित्र आराधना का आधार है

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक परम पूज्य आचार्य श्री भिक्षु की जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में गंगाशहर में आयोजित समारोह के दूसरे दिन तेरापंथ भवन में आयोजित प्रवचन में उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने संविधान विषय पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना वि. सं. 1817 की आषाढ़ी पूर्णिमा को हुई थी। जैसे-जैसे संघ का विस्तार हुआ, आचार्य भिक्षु ने इसकी मर्यादा और अनुशासन को सुरक्षित रखने हेतु वि. सं. 1832 में एक सुव्यवस्थित संविधान की रचना की। मुनिश्री ने कहा कि यह संविधान मात्र व्यवस्थाओं का संकलन नहीं, बल्कि शुद्ध साधुत्व और चरित्र आराधना का आधार है। इसमें न केवल साधु-साध्वियों के जीवन को विनययुक्त मार्ग पर स्थापित करने की कोशिश की गई, बल्कि धर्म में फैली कुरीतियों और विकृतियों को दूर करने का क्रांतिकारी प्रयास भी निहित है। मुनिश्री ने समाज में बढ़ती असहिष्णुता और विनयहीनता पर चिंता जताते हुए कहा कि बड़ों के प्रति आदर, सहनशीलता और कर्तव्यबोध का भाव प्रत्येक घर में जागृत होना चाहिए। उन्होंने पिता-पुत्र, सास-बहू जैसे पारिवारिक रिश्तों में स्नेह, वात्सल्य और सम्मान को पुनः स्थापित करने की प्रेरणा दी। साथ ही, उपस्थित श्रद्धालुओं को आत्म-संयम, परिवार-संरक्षा और संघ-सुरक्षा के लिए जागरूक रहने का आह्वान भी किया। इस अवसर पर मुनिश्री ने श्रावक-श्राविकाओं की तपस्याओं के पचखान भी करवाए।
इसी क्रम में सायंकाल तेरापंथी सभा गंगाशहर द्वारा भव्य भिक्षु भजन संध्या का आयोजन किया गया, जो सेवा केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञा जी एवं साध्वी लब्धियशा जी के सान्निध्य में संपन्न हुई। साध्वी विशदप्रज्ञा जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म कंटालिया जैसे कठोर वातावरण में हुआ। उन्होंने सत्य की साधना करते हुए कांटों के बीच गुलाब की भांति धर्म संघ की स्थापना की। उन्होंने आगे कहा कि यह तेरापंथ धर्मसंघ का सौभाग्य है कि आचार्य भिक्षु का जन्म, अभिनिष्क्रमण और देवलोक गमन सभी मंगलवार को हुए और यह त्रिशताब्दी जन्मोत्सव भी मंगलवार को ही मनाया गया। भजन संध्या में साध्वी मननयशा जी, साध्वी कौशलप्रभा जी एवं अनेक भजनकारों ने भावपूर्ण भजनों से श्रद्धा सुमन अर्पित किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रेम बोथरा ने किया। समारोह के तृतीय दिवस पर मुनि कमलकुमार जी ने तेरापंथ का उद्भव विषय पर अपना उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथ का प्रारंभ वि.स.1817 आषाढी पुर्णिमा से होता है। उसी दिन आचार्य भिक्षु ने नये सिरे से व्रत ग्रहण किए। इस प्रकार उनकी भाव दीक्षा के साथ ही तेरापंथ का सहज प्रवर्तन हुआ।
मुनिश्री ने कहा कि महापुरुषों का अन्तःकरण परमार्थ से परिपूर्ण होता है। वह जैसा अपना हित चाहते हैं, वैसे ही दूसरों का भी। आचार्य भिक्षु को जो श्रेयमार्ग मिला, उसे उन्होंने दूसरों को भी दिखाना चाहा। मुनिश्री ने श्रावकों को प्रेरणा देते हुए कहा कि जैन धर्म महान है, तेरापंथ महान है, कहने से, शब्दों के उचारण से महान नही होता है, प्रत्येक व्यक्ति को इसका अध्ययन करना चाहिए। जिससे श्रद्धा-विश्वास के साथ जुड़ा जा सके। इस अवसर पर मुनि श्रेयांसकुमार जी ने गीत का संगान किया। उपासक राजेन्द्र सेठिया ने आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों एवं तेरापंथ दर्शन पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में अनेकों श्रावक-श्राविकाओं ने गीतिका, कविताओं, एवं वक्तव्यों से तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना के सम्बन्ध में भावों की अभिव्यक्ति दी। तीनों ही दिन का रात्रिकालीन कार्यक्रम सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञा जी, साध्वी लब्धियशा जी के सान्निध्य में शान्तिनिकेतन में आयोजित हुए।