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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
पुराना ओसवाल भवन, जसोल में साध्वी रतिप्रभा जी के सान्निध्य में भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी का कार्यक्रम बड़े उल्लास के साथ मनाया गया। साध्वी रतिप्रभा जी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज हमारे सौभाग्योदय का महत्वपूर्ण दिवस है। आज के दिन एक आलोकपुंज ने अवतार लिया, जिसकी आभा से, जिसकी ऊर्जा से तेरापंथ ही नहीं, जिनशासन का कोना-कोना महक उठा। आचार्य भिक्षु के मन में न कोई महत्वाकांक्षा थी, न कोई आकांक्षा, शुद्धाचार का पालन ही उनका एकमात्र लक्ष्य था। भगवान महावीर की वाणी ही उनके जीवन का मार्गदर्शन थी। शुद्ध धर्म की प्रतिष्ठा के लिए वे जीवन भर संघर्ष करते रहे, साहस, श्रम और दृढ़ निष्ठा के साथ आगे बढ़ते रहे।
साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु हमारे प्रथम आराध्य हैं। वे आत्मार्थी पुरुष थे। सत्य की पगडंडियों पर निरंतर चलते रहे और तूफानी झंझावातों के बीच भी अडिग रहे। उनका लक्ष्य महान था, चिंतन महान था और कार्य भी महान था। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कार्यक्रम का शुभारंभ 'भिक्षु म्हारे प्रगट्या जी' गीत के साथ किया। कन्या मंडल द्वारा 'क्या तुमने भिक्षु को देखा' गीतिका के माध्यम से मंगलाचरण किया गया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष भूपतराज कोठारी, महासभा सदस्य गौतमचंद सालेचा, माणकचंद संखलेचा, अणुव्रत समिति अध्यक्ष महावीर सालेचा, निवर्तमान सभा अध्यक्ष उषभराज तातेड़, प्रवीण भंसाली, पुष्पादेवी बुरड़, जिज्ञाशा डोसी आदि ने गीत, भाषण और मुक्तक के माध्यम से आराध्य के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। रात्रि में धम्म जागरण का आयोजन किया गया। चातुर्मासिक चौदस पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि चातुर्मास का समय एक स्वर्णिम काल है। भवितात्माओं के मन में धर्म और अध्यात्म के प्रति सहज उल्लास देखते ही बनता है। हम सब हर क्षण की सार्थकता प्राप्त करें, जीवन का योगक्षेम मनाते हुए आगे से आगे बढ़ते रहें। साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि जसोल श्रद्धा का गढ़ है, भावना और भक्ति से भरा हुआ क्षेत्र है। साध्वी पावनयशा जी के प्रयास से भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी का जप अनुष्ठान दिनोदिन आगे बढ़ रहा है। साध्वीश्री ने इस अवसर पर तप, जप एवं स्वाध्याय की विशेष प्रेरणा दी। कार्यक्रम में हाजरी का वाचन करते हुए कई उदाहरणों के द्वारा तेरापंथ संघ को मर्यादित संघ बताया गया तथा यह प्रेरणा दी गई कि हम आगम एवं गुरु आज्ञा में आस्थावान रहें। तेरापंथ महिला मंडल द्वारा चातुर्मासिक प्रेरणा की रोचक प्रस्तुति दी गई।
तेरापंथ स्थापना दिवस पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु धर्मक्रान्ति के अग्रदूत थे। उन्होंने शिथिलाचार विरुद्ध धर्मक्रान्ति की। सत्य की राहों पर चलना और सत्य पाना ही उनका परम् ध्येय था। उनकी आत्मा के हर स्पन्दन में भगवान महावीर की शाश्वत वाणी अभिगुंजित थी। साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि स्वामी जी हमारे श्रद्धा के केन्द्र है, आस्था के धाम हैं, उनका नाम ही मंत्र है। उन्होंने जो दिया, जो किया इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया। आचार्य भिक्षु ने किसी भी प्रलोभन पर सिद्धान्तों के साथ समझौता नहीं किया। सायंकाल धम्म जागरण के आयोजन में तेरापंथ सभा, युवक परिषद, महिला मंडल, कन्या मंडल, किशोर मंडल, ज्ञानशाला आदि के द्वारा समूहस्वर के साथ विशेष प्रस्तुति दी। साथ में तेरापन्थ प्रबोध का संगान भी किया गया। त्रिदिवसीय कार्यक्रम में तीन दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक ॐ भिक्षु जय भिक्षु का जप चला। भिक्षु त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष में लगभग 500 भाई- बहनों ने प्रतिदिन 'ॐ भिक्षु जय भिक्षु' की माला फेरने का संकल्प किया है। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ सुरेश डोसी के सुमधुर गीत से हुआ। संपतराज चौपड़ा, मोतीलाल जीरावला आदि ने भी अपने भावों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का सफल संचालन साध्वी मनोज्ञयशा जी ने किया।