आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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कोलकाता

आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

मुनि जिनेशकुमारजी के सान्निध्य में आचार्य श्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के शुभारंभ समारोह का आयोजन जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा (कलकत्ता-पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा भिक्षु विहार, डिविनिटी पवेलियन में भव्य रूप से संपन्न हुआ। इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि जिनेशकुमारजी ने कहा— 'आचार्य भिक्षु सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति थे। वे संयम और तप में पराक्रम करने वाले महर्षि थे। वे मरुधर के मंदार, अलबेले योगी तथा बाल्यकाल से ही प्रतिभासंपन्न और कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। उनकी वाणी, कबीर की भांति, सामाजिक कुरुतियों पर प्रहार करने वाली थी। उनकी आगम-निष्ठा अत्यंत गहन और दृढ़ थी। उनकी धर्मक्रांति तेरापंथ के रूप में विख्यात हुई। उन्होंने जीवन भर सत्य की खातिर संघर्ष और कष्टों को सहन किया।'
मुनि परमानंदजी ने कहा— 'भिक्षु स्वामी साधना के शलाका पुरुष थे।' मुनि कुणालकुमारजी ने इस अवसर पर एक भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुनिश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुआ। मंगलाचरण तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथी सभा, तेयुप एवं टी.पी.एफ. सहित सभी सहयोगी संस्थाओं के सदस्यों द्वारा सामूहिक रूप से भिक्षु अष्टकम के संगान से किया गया। इस अवसर पर कलकत्ता सभा अध्यक्ष अजय भंसाली एवं पूर्वांचल सभा अध्यक्ष संजय सिंघी ने श्रद्धासिक्त विचारों की सारगर्भित अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम के दौरान अहमदाबाद से प्रसारित आचार्य श्री महाश्रमणजी के लाइव प्रवचन को भी श्रद्धापूर्वक श्रवण किया गया।
तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर मुनि जिनेश कुमारजी ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा-तेरापंथ के संस्थापक आचार्य भिक्षु का ध्येय संगठन बनाना नहीं था, किन्तु वे अध्यात्म क्रान्ति के पथ पर बढ़ते गए, कारवां स्वतः बनता गया और तेरापंथ जैसे सुदृढ़ धर्मसंघ का निर्माण हो गया। विक्रम संवत 1817 आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन भाव दीक्षा के साथ राजस्थान के केलवा में तेरापंथ की स्थापना हुई। आचार्यश्री भिक्षु चंचलता की चौखट पर चोट करने वाले थे। शिथिलता के स्वप्न को संयम के शीतल छींटों से तिरोहित कर देते थे। वे असत्य के खिलाफ आवाज उठाते थे और सत्य के सबल संपोषक व समर्थक थे। आचार्य भिक्षु साहित्यकार, तत्ववेत्ता, विधिवेत्ता व महान दार्शनिक थे। इस अवसर पर मुनि परमानन्दजी ने कहा-तेरापंथ की स्थापना के पीछे त्याग और बलिदानों की अमर कहानी है। मुनि कुणाल कुमारजी ने गीतिका का संगान किया। समारोह के प्रारम्भ में महिला मंडल ने मंगलाचरण किया। पूर्वांचल तेरापंथी सभा अध्यक्ष संजय सिंघी, महिला मंडल अध्यक्षा बबीता तातेड़ ने भी अपने विचार रखे। आभार ज्ञापन सभा मंत्री पंकज डोसी तथा समारोह का कुशल संचालन मुनि परमानन्दजी ने किया।