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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
तेरापंथ भवन, साहूकारपेट में आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी उदितयशाजी के सान्निध्य में आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष शुभारंभ समारोह का आयोजन किया गया। समारोह का प्रथम दिवस आचार्य भिक्षु जन्मोत्सव के रूप में मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री द्वारा महामंत्रोच्चार के पश्चात भिक्षु जप एवं 'भिक्षु म्हारे प्रगट्या जी' गीत के साथ हुआ। साध्वी उदितयशाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन साहित्य में धातु, भाव और दिव्य—इन तीन प्रकार के पुरुषों का उल्लेख मिलता है। धातु निर्मित शारीरिक सौष्ठव और भावों की उच्चता से दिव्य पुरुष का निर्माण होता है। आचार्य भिक्षु ऐसे ही दिव्य पुरुष थे, जिनके प्रबल पुरुषार्थ एवं साहस की अनगिनत घटनाओं का समृद्ध इतिहास उपलब्ध है।
साध्वी संगीतप्रभाजी ने समारोह का काव्यात्मक संचालन करते हुए आचार्य भिक्षु के जीवन के अनेक पहलुओं को स्पर्श किया और कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म केवल तेरापंथ की स्थापना के लिए नहीं, बल्कि आगमिक सत्य और वीतराग धर्म के उद्घाटन हेतु हुआ प्रतीत होता है। साध्वी भव्ययशाजी एवं साध्वी शिक्षाप्रभाजी ने आचार्य भिक्षु के जीवन-दर्शन पर अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति अर्पित की। समारोह में तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई द्वारा मंगलाचरण गीतिका की प्रस्तुति दी गई। सभा अध्यक्ष अशोक खतंग एवं महिला मंडल अध्यक्षा लता पारख ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।
चेन्नई के विभिन्न उपनगरीय क्षेत्रों से पधारे श्रावक समाज की गरिमामय उपस्थिति, तथा सभा, तेरापंथ युवक परिषद्, महिला मंडल, टीपीएफ, अणुव्रत समिति एवं विभिन्न ट्रस्ट बोर्डों के पदाधिकारियों, सदस्यों एवं गणमान्य व्यक्तियों की भागीदारी से कार्यक्रम प्रभावक रहा। समारोह में अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने तप, जप, त्याग आदि के संकल्प ग्रहण किए।