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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, किलपाक के तत्वावधान में मुनि मोहजीतकुमारजी के सान्निध्य में आचार्य श्री भिक्षु स्वामी जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के प्रथम चरण पर 'भिक्षु भजनोत्सव' एवं विशाल धम्मजागरण का कार्यक्रम भिक्षु निलयम के महाश्रमणम हॉल में आयोजित किया गया। अर्हत वंदना एवं नमस्कार महामंत्र से प्रारंभ हुए धम्मजागरण में सभाध्यक्ष अशोक परमार ने संगायक ऋषि दुगड़ एवं श्रावक समाज का स्वागत-अभिनंदन किया। उपस्थित विशाल जनसैलाब को संबोधित करते हुए मुनि मोहजीतकुमार जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु एक कुशल विधिवेत्ता के साथ-साथ एक सहज कवि एवं महान साहित्यकार थे। वे जब तक जिए, ज्योति बनकर जिए। उनके जीवन का हर पृष्ठ पुरुषार्थ की गौरवमयी गाथाओं से भरा पड़ा है। मुनिश्री ने कहा कि स्वर का अभ्यास भी साधना है। प्रत्येक हाथी के सिर पर गजमुक्ता मणि नहीं होती या प्रत्येक वन में चंदन के पेड़ नहीं होते, वैसे ही स्वर का उपहार हर किसी को प्राप्त नहीं होता।
मुनि मोहजीतकुमारजी, मुनि भव्यकुमारजी एवं मुनि जयेशकुमारजी ने अलग-अलग गीतों द्वारा आचार्य भिक्षु की अभिवंदना में अभ्यर्थना प्रस्तुत की। इस भिक्षु भजनोत्सव में सभा के निवेदन पर विशेष रूप से भीलवाड़ा से पधारे संगायक ऋषि दुगड़ ने धर्मसंघ के नए, पुराने और लोकप्रिय गीतों की स्वर लहरियों से समा बाँधे रखा। इससे पूर्व प्रातःकाल प्रवचन में महामंत्रोच्चार से भिक्षु चेतना वर्ष के प्रथम चरण के शुभारंभ कार्यक्रम में उपस्थित भिक्षु भक्तों को संबोधित करते हुए मुनि मोहजीतकुमारजी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म क्रांति के आवास का, सिद्धांतों के विश्वास का, सहिष्णुता का, फौलादी साहस का, सापेक्षता के समाधान का और साधन-शुद्धि का जन्म था। उन्होंने सम्यक आचार और अनुशासन को महत्व दिया। आचार्य भिक्षु की प्रतिभा, प्रज्ञा और पुरुषार्थ ने बचपन में ही उनके लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए।
आचार्य भिक्षु के जन्म एवं बोधि दिवस के संदर्भ में मुनि जयेशकुमारजी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म रूढ़ परंपराओं एवं मिथ्या अवधारणाओं को तोड़कर समाज को नए परिवेश में ढालने के लिए हुआ था। उनकी सोच सम्यक यथार्थ को स्वीकारने के लिए समर्पित थी। संचालन करते हुए मुनि भव्यकुमारजी ने आचार्य भिक्षु के जीवन, दर्शन और बोधि पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर श्रावक समाज ने जप, तप, त्याग व प्रत्याख्यान स्वीकार कर आर्य भिक्षु को भावांजलि समर्पित की। तेरापंथ सभा मंत्री विजय सुराणा एवं महिला मंडल मंत्री वनिता नाहर ने विचार प्रकट किए। तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने 'भिक्षु श्रद्धा स्वर' भावांजलि गीत प्रस्तुत किया।